Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध
को जानकर संयम पर्याय से कर्म क्षय करता है। इस प्रवचन में कई एक हलुक जीव एकाकी विहार प्रतिमा में प्रवृत्त हो जाते हैं, नाना प्रकार के अभिग्रहों से युक्त हो जाते हैं, अतः वह सामान्य मुनियों से विशिष्टता रखता है, अज्ञात कुलों में निर्दोष तथा एषणिक भिक्षा को ग्रहण करता है । इस प्रकार वह बुद्धिमान साधक संयमवृत्ति का पालन करता है, किन्तु यदि उसे अज्ञात कुलों में सुगन्ध युक्त या दुर्गंधयुक्त आहार मिला है, तो वह उसमें राग-द्वेष न करे । यदि एकाकी प्रतिमा वाला भिक्षु किसी श्मशानादि स्थान पर ठहरा हुआ है और वहां पर यक्षादि के भयानक शब्द सुनाई पड़ें, तो उसे स्ववृत्ति से विचलित नहीं होना चाहिए । यदि व्याघ्रादि भयानक प्राणी, अन्य प्राणियों को संताप दे रहे हों या वे हिंसक जन्तु मुनि पर आक्रमण कर रहे हों, तो वह उन दुःख रूप स्पर्शो को शान्तिपूर्वक सहन करे । तात्पर्य यह है कि मोक्षाभिलाषी जीव को यदि किसी प्रकार के हिंसक प्राणी कष्ट दें, तो वह उन कष्टों-परीषहों को धैर्यपूर्वक सहन करने में तत्पर रहे। इस प्रकार मैं कहता हूँ।
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हिन्दी - विवेचन
प्रस्तुत सूत्र में साधक को उपदेश दिया गया है कि वह सदा सहिष्णु बना रहे । वह अपनी साधना का पूरी निष्ठा के साथ पालन करे। वह अपने संयमपथ पर दृढ़ता से चलता रहे और वीतराग द्वारा उपदिष्ट धर्म एवं आज्ञा का सम्यक् प्रकार से पालन करे । वह यह विचार करे कि दुनिया में धर्म के सिवाय कोई भी पदार्थ अक्षय नहीं है। धर्म ही कर्म मल को दूर करके आत्मा को शुद्ध करने वाला है । अतः हिंसा आदि समस्त दोषों का त्याग करके जीवन निर्वाह के लिए निर्दोष आहार, वस्त्र - पात्र आदि * - स्वीकार करता हुआ शुद्ध संयम का पालन करे । परन्तु, तीर्थंकर भगवान की आज्ञा के विपरीत आचरण न करे ।
इस तरह संयम-साधना में संलग्न रहे और उक्त समय में आने वाले अनुकूल एवं प्रतिकूल परीषहों को समभाव पूर्वक सहन करे । कोई दुष्ट व्यक्ति उस पर प्रहार भी करे, तब भी वह उसके प्रति द्वेष न करे, मन में भी घृणा एवं नफरत का भाव न रखे। यदि कभी श्मशान आदि शून्य स्थानों में ध्यान लगा रखा हो और उस समय कोई हिंसक पशु, मनुष्य या देव कष्ट दे, तब भी अपने आत्मचिन्तन का त्याग न करें