Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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षष्ठ अध्ययन, उद्देशक 2
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पदार्थ-वत्थं-वस्त्र। पडिग्गहु-पात्र। कंबलं-और्णवस्त्र-ऊन का वस्त्र। पायपुंछणं-रजोहरण, इनको। विउसिज्जा-छोड़कर (कई एक तो देश विरति धर्म को अंगीकार कर लेते हैं, कई एक अव्रती सम्यग्दृष्टि बन जाते हैं और कई एक धर्म से सर्वथा पतित होजाते हैं)। दुरहियासए-दुःख से सहन किए जाने वाले। परिसहे-परीषहों को। अणुपुव्वेण-अनुक्रम से। अणहियासेमाणा-न सहन करते हुए, और। कामे-काम भोगों में। ममायमाणस्स-तीव्र ममत्व रखने वाले को। इयाणिं-तत्क्षण-दीक्षा का परित्याग करने के पश्चात्। वा-शब्द परस्पर सापेक्ष अर्थ का बोधक है। मुहत्तेण-अन्तर्मुहूर्त मात्र से ही। वा-अथवा । अपरिमाणाएअपरिमित काल में। भेए-आत्मा और शरीर का भेद हो जाता है। एवं-इस प्रकार। से-वह-कामाभिलाषी। अन्तराएहिं-अन्तरायों से युक्त। कामेहि-काम भोगों से। आकेवलिएहि-जो प्रतिपक्ष से युक्त हैं अर्थात् दुःख से युक्त हैं। अवइन्नाअसम्पूर्ण हैं, तथा वे-पुरुष संसार समुद्र से उत्तीर्ण नहीं हो सकते। च-शब्द समुच्चय अर्थ में है। एए-ये कामाभिलाषी पुरुष काम भोगों से अतृप्त होकर ही शरीर के भेद को प्राप्त करते हैं। ____ मूलार्थ-वे-कुशील मोहनीय कर्म के उदय से संयम परित्याग के समय संयम के साधन उपकरणों को भी छोड़ देते हैं। उनमें से कोई एक तो संयम के उपकरण वस्त्र, पात्र, कम्बल और रजोहरणादि का सर्वथा परित्याग करके देशविरति धर्म को ग्रहण कर लेते हैं, कुछ अविरति सम्यग् दृष्टि बन जाते हैं और कुछ धर्म से सर्वथा पतित हो जाते हैं, कारण कि असहनीय कठिन परीषहों से-जो कि अनुक्रम अथवा युगपद से उदय में आए हुए हैं, पराजित होकर मोह के वशीभूत होकर संयम का परित्याग कर देते हैं तथा पापोदय से काम-भोगों में अधिक ममत्व रखने वाले उन असंयमी पुरुषों के शरीर का तत्काल ही अथवा मुहूर्त मात्र में अथवा कुछ
और अधिक समय में अपरिमित काल के लिए आत्मा से भेद हो जाता है। इस प्रकार विघ्नों और दुःखों से युक्त जो विषय-भोग हैं, उनके निरन्तर सेवन से वे संसार समुद्र को पार नहीं कर सकते। वास्तव में कामी पुरुष काम-भोगों से अतृप्त रहकर ही शरीर का परित्याग कर देते हैं, अर्थात् वे भोगों से कभी भी तृप्त नहीं होते हैं।