Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध
रच जाता है, इस प्रकार अर्हत् प्रवचन में वर्णन किया गया है । से - वह जिनेन्द । एगे - एक अद्वितीय । मुणी - तीन लोक के जानने वाला मुनि | संविद्धपहे - जिसने मोक्ष मार्ग को सम्यक् प्रकार से सन्मुख किया हुआ है अर्थात् जिसकी गति मोक्ष मार्ग में है। अन्नहा—अन्यथा - जो हिंसादि में प्रवृत्ति कर रहे हैं इस प्रकार के । लोगं–लोक को। उवेहमाणे - उपप्रेक्षमाण - उसकी विचारना करता हुआ, अर्थात् आत्मा के सावद्य व्यापार की निवृत्ति की आलोचना करता हुआ, निम्न प्रकार से विचार करता है । इय - इस प्रकार । कम्म- जो बंध कर्म हैं उसको। सव्वतो - सर्व प्रकार से । परिणाय - ज्ञपरिज्ञा से जान कर और प्रत्याख्यान परिज्ञा से प्रत्याख्या करे अर्थात् छोड़ दे। से- वह कर्म परिहर्ता मन वचन और काय से । न हिंसइ - किसी जीव की हिंसा नहीं करता, किन्तु । संजमइ - पाप में प्रवृत्त हुए आत्मा को संयमन करता है वा सत्तरां प्रकार के संयम का पालन करता है । नोपगब्भइ - असंयम प्रवृत्ति में धृष्टता नहीं करता, अर्थात् लज्जा शील है, किन्तु । उवेहमाणे - विचार करता हुआ विचरता है। पत्तेयं - प्रत्येक प्राणी को । सायं - साता - सुख प्रिय है, अन्य के सुख से अन्य सुखी नहीं होता, इत्यादि विचारों से हिंसादि कर्म, मुनि, नहीं करता, तथा । वण्णएसी- - यश की इच्छा करने वाला मुनि । नारभे कंचणं - किसी प्रकार के पाप कर्म में प्रवृत्ति न करे । सव्वलोए - सर्वलोक के विषय तथा । एगप्पमुहे - जिसने एक मोक्ष पथ में दृष्टि दी हुई है, वह पापारम्भ नहीं करता। विदिसप्पइन्ने - असंयम से उत्तीर्ण हो गया है । निव्विण्णचारी - वैराग्य युक्त होकर विचरने वाला, तथा हिंसादि क्रियाओं से निवृत्त होकर चलने वाला । पयासु-जीवों में। अरए-अरत अर्थात् आरम्भादि से निवृत्त हो गया है, अथवा । पयासु - रि - स्त्रियों में। अरए-रत नहीं है।
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मूलार्थ-भावयुद्ध के योग्य औदारिक शरीर का मिलना दुर्लभ है, तीर्थंकरों ने परिज्ञा विवेक से भाषण किया है कि धर्म से पतित व्यक्ति बाल भाव को प्राप्त होकर गर्भ में रमण करता है। इस प्रकार आर्हत मत में वर्णन किया गया है कि जो जीव, रूपादि विषयों या हिंसादि कार्यों में मूर्छित है, वही गर्भादि में रहता, अर्थात् रमण . करता है, वह जितेन्द्रिय मुनि एकमात्र मोक्षमार्ग में ही गति कर रहा है, अन्यथा - अन्य