Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध मूलम्-से न सद्दे, न रूवे, न गंधे, न रसे, न फासे, इच्चेव, त्तिबेमि॥172॥
छाया-स न शब्दः, न रूपः, न गन्धः, न रसः, न स्पर्शः इत्येव (इत्येतावन्त एव वस्तुनो भेदाः स्यु) इति ब्रवीमि। ___ पदार्थ-से-वह मुक्तात्मा। न सद्दे-शब्द रूप नहीं है। न रूवे-रूप युक्त नहीं है। न गंधे-गंध रूप नहीं है। न रसे-रस युक्त नहीं है। न फासे-स्पर्श वाला नहीं है। इच्चेव-वस्तु के इतने ही भेद हो सकते हैं। त्तिबेमि-इस प्रकार मैं कहता हूँ। ____ मूलार्थ-वह मुक्तात्मा शब्द, रूप, गंध, रस एव स्पर्श युक्त नहीं है और रूपी वस्तु के इतने ही भेद होते हैं। ऐसा मैं कहता हूं। हिन्दी-विवेचन
प्रस्तुत सूत्र में पूर्व सूत्र में विस्तार से कही गई बात को संक्षेप में कहा है और यह बताया है कि वस्तु के इतने ही भेद होते हैं। शब्द, रूप, गंध, रस और स्पर्श के
अतिरिक्त वस्तु का कोई भेद नहीं होता। अतः इनके आधार पर वस्तु का वर्णन किया जाता है और मुक्तात्मा में इन सब का अभाव है; अतः उसका शब्दादि के द्वारा वर्णन नहीं किया जा सकता। सर्वज्ञ पुरुष भी उसका प्रत्यक्ष तो करते हैं; परन्तु उस आत्मानुभव को पूर्णतया व्यक्त नहीं कर सकते। क्योंकि अभिव्यक्ति का साधन शब्द है और इस बात को हम देख चुके हैं कि शब्द में उसका विवेचन करने की शक्ति नहीं है। अतः उसका अनुभव निरावरण स्थिति को प्राप्त करके ही किया जा सकता है।
'त्तिबेमि' का अर्थ पूर्ववत् समझे।
॥ षष्ठ उद्देशक समाप्त ॥
॥ पंचम अध्ययन लोकसार समाप्त ॥