Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध ___ उक्त कथन आर्यत्व का नहीं, अनार्यत्व का संसूचक है, क्योंकि आर्य पुरुष किसी भी स्थिति में हिंसा में धर्म नहीं मानते हैं। हिंसा हिंसा ही है, वेद आदि धर्म-ग्रंथों में उल्लेख होने मात्र से वह अहिंसा नहीं हो सकती। अपने स्वाद का पोषण करने एवं स्वार्थ को साधने हेतु किसी प्राणी को मारना या परिताप देना पाप ही है। ऐसी स्थिति में धर्म के नाम पर हिंसा करना तो पाप ही नहीं, महापाप है, पतन की पराकाष्ठा है। धर्म सब प्राणियों का कल्याण करने वाला है, सब को शान्ति देने वाला है। उसके नाम पर जीवों को त्रास देना धर्म की हत्या करना है।
यह तो सूर्य के उजाले की भांति साफ है कि हिंसा में धर्म नहीं हैं। धर्म वही है, जिसमें प्राणिमात्र के हित की भावना रही हुई है और ऐसी क्रिया में हिंसा आदि पाप कार्यों का सर्वथा निषेध किया गया है। इसलिए हिंसा आदि पाप-कार्यों से निवृत्त व्यक्ति ही आर्य हैं और वे ही मोक्ष-मार्ग पर चलने के अधिकारी हैं।
'त्तिबेमि' का अर्थ पूर्ववत् समझें।
॥ द्वितीय उद्देशक समाप्त ॥