Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
पंचम अध्ययन : लोकसार
.. प्रथम उद्देशक चतुर्थ अध्ययन में सम्यक्त्व का विवेचन किया गया है। सम्यक्त्व के बाद सम्यक् चारित्र का स्थान है। चूँकि सम्यग दर्शन का महत्त्व चारित्र के विकास में है, इसलिए लोक में चारित्र ही सार रूप माना गया है। प्रस्तुत अध्ययन का नाम भी लोकसार है। अतः इस अध्ययन में चारित्र का विस्तृत विवेचन किया गया है। . ...
प्रस्तुत अध्ययन के नाम पर विचार करते हुए वृत्तिकार ने प्रश्नोत्तर के रूप में लिखा है
लोगस्स उ को सारो? तस्य य सारस्स को हवइ सारो?
तस्स य सारो सारं जइ जाणसि पुछिओ साह है! ___ अर्थात्-गुरुदेव! इस चौदह राजूलोक का सार क्या है.तथा उस लोक के सार का सार तत्त्व एवं उस सार का भी सार तत्त्व क्या है? इसका समाधान करते हुए वृत्तिकार कहते हैं
लोगस्स सारो धम्मो धम्मपि य नाणसारियं वितिं
नाणं संजमसारं संजमसारं च निव्वाणं॥ अर्थात्-लोक का सार धर्म है, धर्म का सार ज्ञान है, ज्ञान का सार संयम है और संयम का सार निर्वाण-मोक्ष है। निष्कर्ष यह रहा कि लोक का सार संयम है और संयम-साधना से मुक्ति प्राप्त होती है। संयम-साधना के अभाव में कोई भी व्यक्ति मोक्ष को नहीं पा सकता है। अतः सूत्रकार असंयमी-असाधु जीवन किसका होता है, अर्थात् मुनित्व का अभाव किस में है, इस बात को स्पष्ट करते हुए कहते हैं
मूलम्-आवंती केयावंती लोयंसि विप्परामुसंति अट्ठाए अणट्ठाए, एएसु चेव विप्परामुसंति, गुरु से कामा, तओ से मारं ते, जओ से . मारते तओ से दूरे, नेव से अंतो नेव दूरे॥142॥