Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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पंचम अध्ययन, उद्देशक 1
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है-“संशयात्मा विनष्यति” अर्थात् संशयशील आत्मा का विनाश होता है।
इससे स्पष्ट होता है कि संशय पदार्थ ज्ञान के लिए होना चाहिए। भगवती सूत्र में गौतम स्वामी के लिए जात संशय, संजात संशय और समुत्पन्न संशय ऐसा तीन बार उल्लेख किया गया है । जात संशय की व्याख्या करते हुए वृत्तिकार अभय देव सूरि ने लिखा है-'जातः संशयो यस्य स जातसंशयः, संशयस्तु अनवधारितार्थ ज्ञानं जातसंशयः इदं वस्त्वेवं स्वादेवमिति।' अर्थात! जो ज्ञान पहले धारण नहीं किया गया है, उसकी प्राप्ति के लिए किए जाने वाले संशय को जात संशय कहते हैं। इस प्रकार यह संशय ज्ञान वृद्धि में कारणभूत है। इससे पदार्थों का यथार्थ बोध होता है और उनकी हेयोपादेयता का भी परिज्ञान होता है।
हेय एवं उपादेय वस्तु का त्याग एवं स्वीकार कौन कर सकता है, इस बात को स्पष्ट करते हुए सूत्रकार कहते हैं___ मूलम्-जे छेए से सागारियं न सेवइ, कटु एवमवियाणओ बिइया मंदस्स बालया, लद्धा हुरत्था पडिलेहाए आगमित्ता आणाविज्जा अणासेवणय तिबेमि॥145॥
छायायच्छेकः स सागारिक-मैथुनं न सेवते कृत्वा एवमभिजानतः द्वितीया मंदस्य बालता लब्धानपि अर्थान् प्रत्युपेक्ष्य आगम्य आज्ञापयेत् अनासेवनतया, इति ब्रवीमि। ___ पदार्थ-जे-जो साधक निपुण है। से-वह। सागारियं-मैथुन कर्म को। न सेवइ-सेवन नहीं करता है, परन्तु जो अज्ञानी व्यक्ति मैथुन का आसेवन करता है, वह उसका सेवन। कटु-करके भी गुरु के पूछने पर। एवं-इस प्रकार। अवियाणयो-अपलाप करता है कि मैंने मैथुन का आसेवन नहीं किया है, यह। मन्दस्स-उस मन्दमति वाले व्यक्ति की। बिइया-दूसरी। बालया-अज्ञानता है। इसलिए मतिमान पुरुष को। लद्धा-विषयों का संयोग मिलने पर भी। हुरत्था-उसके विपाक को। पडिलेहाए-विचार कर। आगमित्ता-जानकर। अणासेवणय-उनका सेवन नहीं करना चाहिए। आणविज्जा और अन्य व्यक्तियों को विषयों से दूर
1. भगवती सूत्र