Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध
___ ऐसे व्यक्ति मोक्ष से दूर रहते हैं, क्योंकि सम्यग् ज्ञान, दर्शन और चारित्र का परिपालन करना मोक्षमार्ग है और विषयाभिलाषी प्राणी रत्नत्रय की आराधना-साधना कर नहीं सकता। वह रात-दिन विषय-वासना में आसक्त रहता है; अतः मोक्ष से दूर कहा गया है।
विषयासक्त व्यक्ति रात-दिन भोगों में संलग्न रहता है। अतिभोग के कारण उसकी इन्द्रियां जर्जरित होती हैं, शरीर दुर्बल एवं रोग से घिर जाता है। इस तरह वे विषयजन्य सुख से वंचित रहता है और उसमें मानसिक भावों से लीन रहने के कारण वह संसार से दूर नहीं होता है। क्योंकि उसका चिन्तन सदा विषय-वासना में ही लगा रहता है। अतः वह निरन्तर जन्म-मरण के प्रवाह में बहता रहता है।
सम्यक्त्व की साधना करने वाले व्यक्ति के अध्यवसाय किस तरह के रहते हैं, इसका विवेचन करते हुए सूत्रकार कहते हैं
मूलम्-से पासइ फुसियमिव कुसग्गे पणुन्नं निवइयं वाएरियं एवं बालस्स जीवियं मंदस्स अवियाणओ, कूराइंकम्माइं बाले पक्कुव्वमाणे तेण दुक्खेण मूढे विप्परिआसमुवेइ, मोहेण गब्भं मरणाइ एइ, एत्थ मोहे पुणो-पुणो॥143॥ ___ छाया-स पश्यति उदकबिन्दुमिव कुशाग्रे प्रणुन्नं निपतितं वातेरितः मेवं बालस्य जीवितं मन्दस्य अविजानतः क्रूराणि कर्माणि बालः प्रकुर्वाणः तेन दुःखेन मूढः विपर्यासमुपैति मोहेन गर्भमरणादिमेति अत्र मोहः पुनः पुनः। .
पदार्थ-से-वह-सम्यग् दृष्टि व्यक्ति संसार को असार। पासइ-देखता है। कुसग्गे-कुशा-तिनके के अग्रभाग पर स्थित। फुसियमिव-जल बिन्दु की तरह। बालस्स-बालक का। जीवियं-जीवन है। पणुन्नं-कुशाग्र पर स्थित वह जल बिन्दु अन्य जल बिन्दु से या। वाएरियं-वायु से प्रेरित हुआ। निवइयं-गिर जाता है। एवं-इसी प्रकार बाल्यकाल का जीवन समझना चाहिए। मंदस्स-विवेक विकल। अवियाणओ-परमार्थ को नहीं जानता हुआ। बाले-बाल जीव। कूराईक्रूर। कम्माइं-कम। पकुव्वमाणे-करता हुआ। तेण-उस दुष्कर्म के फलस्वरूप। दुःखेण-दुःख से वह। मूढे-मूढ़। विप्परियासमुवेइ-विपर्यास भाव को प्राप्त हो