Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
चतुर्थ अध्ययन : सम्यक्त्व
तृतीय उद्देशक द्वितीय उद्देशक में कर्मबन्ध एवं निर्जरा तथा संवर के स्वरूप को बताया गया है। उसके ज्ञान के बाद यह जरूरी है कि कर्म के आगमन के द्वार को रोककर पूर्व बँधे हुए कर्मों की निर्जरा करके कर्मों का आत्यन्तिक क्षय किया जाए। इसलिए प्रस्तुत उद्देशक में निर्जरा के साधन-तप का उल्लेख किया गया है। सम्यग् ज्ञान पूर्वक किए गए तप से कर्म नष्ट होते हैं। इस बात को बताते हुए सूत्रकार कहते हैं___ मूलम्-उवेहि णं बहिया य लोगं, से सव्वलोगंमि जे केइ विण्णू, अणुवीइ पास निक्खित्तदंडा, जे केइ सत्ता पलियं चयंति, नरा मुयच्चा धम्मविउत्ति अंजू, आरंभजं दुक्खमिणति णच्चा, एवमाहु संमत्तदंसिणो, ते सव्वे पावाइया दुक्खस्स कुसला परिण्णमुदाहरंति इय कम्मं परिण्णाय सव्वसो॥135॥
छाया-उपेक्षस्व (ण) वहिः लोकं स सर्व-लोके ये केचिद् विज्ञाः अनविचिन्त्य पश्य निक्षिप्त दण्डा ये केचित् सत्त्वाः पलितं-कर्म त्यजन्ति नराः मृतार्चा धर्मविदः इति ऋजवः आरम्भजं दुखमिदमिति ज्ञात्वा एवमाहुः सम्यक्त्व दर्शिनःसमस्त दर्शिनः ते सर्वे प्रावादिकाःदुखस्य कुशला परिज्ञा मुदाहरन्ति इति कर्म परिज्ञाय सर्वशः।
पदार्थ-णं-वाक्यालंकार में प्रयुक्त हुआ है। लोगं-अन्य धर्मावलम्बी व्यक्तियों को। बहिया-धर्म से बाहर आचरण करते देखकर। उवेहि-उपेक्षा करनी चाहिए। से-वह। सव्वलोगंमि-समस्त लोक में। जे-जो। केइ-कोई-लोक में विद्वान हैं, उनमें भी श्रेष्ठ। विण्णू-विद्वान हो जाता है। अणुवीइ-ऐसा विचार कर। पास-तू देख। निक्खित दंडा-जिन्हों ने दंड को त्याग दिया है। जे केइ-जो कोई धर्म के ज्ञाता। सत्ता-प्राणी हैं, वे। पलियं-कर्म को। चयंति-छोड़ देते हैं। नरा-मनुष्य