Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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चतुर्थ अध्ययन, उद्देशक 2
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'सव्वेपाणा 4-सब प्राणी-भूत जीव और सत्त्व। हंतव्वा 5-मारने चाहिए, आज्ञा द्वारा उनसे काम लेना चाहिए, परिताप देना चाहिए, पकड़ना चाहिए और मरणांत कष्ट देना चाहिए। इत्थवि-इन यज्ञादि में। जाणह-जान लो। नत्थित्त्य दोसो-इन क्रियाओं में कोई दोष नहीं है। अणारिय वयणमेयं-हिंसा युक्त होने से यह सब
अनार्य वचन हैं। वयं-हम। पुण-फिर। एवं-इस प्रकार। आइक्खामो-कहते हैं। एवं-इस प्रकार। भासामो-भाषण करते है। एवं-इस प्रकार। परूवेमो-प्ररूपण
करते हैं। एवं-इस प्रकार। पण्णवेमो-प्रज्ञापन करते हैं। सव्वेपाणा 4-सब • प्राणी, सब भूत, सब जीव और सब सत्त्व। न हंतव्वा-नहीं मारने चाहिए। न
अज्जावेयव्वा-उनसे. बलात् काम नहीं लेना चाहिए। न परि पित्तव्वा-नहीं पकड़ना चाहिए। न परियावेयव्वा-उन्हें परिताप नहीं देना चाहिए। न उद्दवेयव्वा-न ही मरणांत कष्ट देना चाहिए। इत्थवि-इस स्थान पर भी तुम । जाणइ-जान लो। नत्त्यित्त्थ दोसो-इस अहिंसा रूप क्रिया में कोई दोष नहीं। आयरिय-वयणमये-यह
आर्यवंचन है। पुव्वं-पहले। समयं-आगम की। निकाय-व्यवस्था करके फिर। . पत्तेय पत्तेयं-प्रत्येक को। पुच्छिस्सामि-पूडूंगा। हंभो पवाइया-हे प्रवादको,
वादिलोगो! किं-क्या। भे-आपको। सायं दुक्खं असायं-साता में दुःख है किं वा असाता में? अथवा दुःख यह साता रूप मन को प्रसन्न करने वाला है या मन के प्रतिकूल असाता रूप है? दुःख को साता रूप मानना लोक, आगम और अनुभव के विरुद्ध है और यदि असाता रूप कहें तब तो इस प्रकार से। समियापडिवण्णेयावियथार्थता को प्राप्त होने वाले यथार्थ कहने वाले उन वादियों के प्रति। एवं-इस प्रकार। वूया-कहना चाहिए। सव्वेसिं पाणाणं-सब प्राणियों को। सव्वेसिं भूयाणं-सर्व भूतों को। सव्वेसिंजीवाणं-सर्व जीवों को। सव्वेसिसत्ताणं-सर्व सत्त्वों को। असायं-असाता। अपरिनिव्वाणं-अनिवृत्ति रूप। महदमयं-महान भय है। दुक्खं-दुःख रूप है। त्तिबेमि-इस प्रकार मैं कहता हूँ।
मूलार्थ-इस लोक में जितने मनुष्य हैं, उनमें कितने एक श्रमण और ब्राह्मण पृथक्-पृथक् विवाद करते हुए इस प्रकार कहते हैं-हम ने देख लिया है, सुन लिया है, मान लिया और जान लिया है। इतना ही नहीं, किन्तु ऊर्ध्व-अधः और तिर्यगादि सभी दिशाओं में भली-भांति पर्यालोचन कर लिया है कि सभी प्राणी, सभी भूत,