Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
अध्यात्मसार:5
• उसमें भी अनेक भंग हैं। अनाचार की भी अनेकानेक अवस्थाएं हैं। एक तो पूरी तरह से लीन हो जाना; तीनों ही योगों का उस कार्य के साथ लीन हो जाना, किसी एक योग का लीन होना, अंशतः लीन होना इस प्रकार अनेकानेक अवस्थाएं होती हैं।
अब यह देखना है कि काम-भोग छोड़ना दुष्कर क्यों? क्योंकि कामनाएं, सदैव जागती रहती हैं और इन कामनाओं का कारण क्या है? इन सारी कामनाओं के पीछे एक मूलभूत आधारभूत कामना है, जीने की कामना, जीवैषणा। ____ जीवैषणा क्यों? क्योंकि उसे अपने स्वभाव का पता नहीं है कि मैं अनादि अनन्त और अजर-अमर हूँ। उसको लगता है कि मैं मर भी सकता हूँ। उसे मृत्यु का भय है। उसे मृत्यु का भय क्यों है? क्योंकि वह अपने आपको देह स्वरूप मानता है, आत्मज्ञान का अभाव है।
काम-भोग छोड़ना दुष्कर है, क्योंकि जैसे पहले ही बताया गया कि कामनाएं निरन्तर जगती रहती हैं। एक पूरी हुई दूसरी और दूसरी के पूरी होने के बाद तीसरी प्रारंभ होती है। यहाँ पर भी साधक के लिए कहा गया है कि कामना जग भी जाए पर यदि वह केवल उसका अवलोकन करता रहे, तब वह अपने आप चली जाएगी। यह साधना का रास्ता है, फिर भी कुछ कामनाएं इतनी प्रबल होती हैं, कुछ संस्कार इतने तीव्र और चिकने होते हैं कि साधक उनके साथ बह जाता है। इस प्रकार जब तक देह के साथ अभेद बुद्धि है, तब तक कामनाएं जागती ही रहेंगी। देहासक्ति मूल जड़ है और फिर जन्म से हमें यही पता है कि मैं देह हूँ। आत्मा और देह का नीर-क्षीर का सम्बन्ध हो गया है। इस सम्बन्ध से परे सत्य को जानने के लिए आत्म-ज्ञान, भेद-ज्ञान और स्वरूपबोध आवश्यक है। इस देहबुद्धि के पीछे अनंत जन्मों के संस्कार हैं। ये संस्कार मुख्यतः चार प्रकार के हैं-आहार, भय, मैथुन, परिग्रहसंज्ञा।
साधना करते रहें, अपने आप अनुभव होगा। अभी हम देह से जुड़े हुए हैं। इस देहबुद्धि के कारण आहारशुद्धि स्थानशुद्धि, सद् वाचन, संत-समागम, स्वाध्याय, विधि-निषेध को बताने वाले ये नियम-उपनियम आवश्यक हैं। इन सारी बातों का प्रभाव मुख्यतः देह और मानसिक भावनाओं पर पड़ता है। हम देह और भावनाओं के