Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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अध्यात्मसार : 5
मूलम् : कामा दुरतिक्कमा, जीवियं दुप्पडिवूहगं, कामकामी खलु अयं पुरिसे, से सोयइ जूरइ, तिप्पइ परितप्प | 2/5/93
मूलार्थ : काम-भोगों का परित्याग करना अति दुष्कर है । जीवन सदा क्षीण होता है, उसे बढ़ाया नहीं जा सकता है, अतः कामेच्छा से युक्त व्यक्ति अपनी वासना की पूर्ति न होने से शोक करता है, खेद करता है, रोता है और सब प्रकार से पश्चात्ताप करता है ।
यहाँ पर दिया हुआ है दुरतिकम्मा - काम भोग का त्याग करना दुष्कर है।
काम - भोगों के त्याग की दुष्करता- पहले काम-भोग के अर्थ को समझें । इसमें दो शब्द हैं काम और भोग । काम अर्थात् कामना जागना और भोग, अर्थात् कामना का पूर्ण होना । इस प्रकार काम-भोग शब्द के अन्दर सभी अवस्थाएं आ गयीं। अतिक्रम से अनाचार तक।
काम : कामना. जागना—अतिक्रम, भोग अर्थात् उस कामना को पूर्ण करना अनाचार - अब यह काम भोग अतिक्रम से - अनाचार ये चारों ही अवस्थाएं तीन • प्रकार से त्रियोग - मन से, वचन से, काया से । मन से भी अतिक्रम, व्यतिक्रम, अतिचार, अनाचार | वचन से भी अतिक्रम और काया से भी ।
यह बात जरा भिन्न है। जैसे अभी तक आपने पढ़ा हुआ है कि मन में विचार आना, इच्छा जागना, अतिक्रम, पूर्ण संकल्प जागना व्यतिक्रम, कार्य करने हेतु पूरी तरह तैयार हो जाना। अतिचार और उस कार्य को सम्पन्न कर लेना अनाचार । इस • प्रकार इसका अर्थ यह हुआ । अतिचार और अनाचार, अधिक-से-अधिक काया से ही हो सकते हैं, मन से नहीं। तब फिर त्रिकरण और त्रियोग से प्रत्याख्यान कैसे होंगे? यदि मन से अतिचार-अनाचार नहीं हो सकता तब फिर, मन से करना, कराना एवं अनुमोदना के प्रत्याख्यान किस प्रकार ? लेकिन क्योंकि प्रत्याख्यान त्रिकरण त्रियोग से दिये हुए हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि मन से भी करना, कराना एवं अनुमोदना हो सकता है । अतः केवल मन से ही अतिचार और अनाचार भी हो सकता है ।
मन से अतिचार और अनाचार किस प्रकार ? मन में साधारण रूप से इच्छा का जागना, जैसे किसी व्यक्ति के प्रति क्रोध आना, अतिक्रम | अनेक विचारों के पश्चात्