Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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अध्यात्मसार:6
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• आदि अघातिकर्मों का वहाँ सद्भाव है, अतः वह कर्मों से सर्वथा मुक्त भी नहीं कहा जा सकता।
वक्ता की योग्यता : कौशल
यहाँ वक्ता के सम्बन्ध में बताया गया है। 'के यं पुरिसे कंच नए?' वह पुरुष कौन है, कैसा है, उसकी आस्था कहाँ पर है, क्योंकि जो व्यक्ति जैसा होगा, उसे वैसी ही भाषा में समझाना होगा। वैसी ही भाषा वह समझ सकता है; अन्यथा बात सत्य होते हुए भी उसे असत्य प्रतीत होती है।
सर्वप्रथम यह कि वह पुरुष कौन है? अब यह कैसे पता चलेगा कि वह कैसा है? यह योग्यता वक्ता में होनी चाहिए कि वह बिना पूछे पहचान जाए कि वह पुरुष कौन है, कैसा है? उसके आने से, बैठने से, चेहरे से, बोलने से, भाव-भंगिमा और शिष्टाचार से, उसे यह बोध हो जाना चाहिए कि उसके जीवन की मूल विचारधारा कैसी है, बिना पूछे ही वक्ता में यह जानने की क्षमता होनी चाहिए कि श्रोता का जीवन कैसा है। क्योंकि अगर पूछोगे तो वह स्वयं भी नहीं बता पाएगा कि मेरा जीवन कैसा है।
वक्ता में यह योग्यता होती है कि जो व्यक्ति ने नहीं बताया वह उसे भी जान लेता है कि व्यक्ति की मूल प्रकृति कैसी है। वह परिग्रही है या लोभी है या उदार है, रोगी है या स्वस्थ है, आलसी है या परिश्रमी है? वह सदा अकेला रहता है या मित्र के साथ रहता है? इस प्रकार उसके सम्पूर्ण बाह्य-आभ्यन्तर व्यक्तित्व का पूरा लेखा-जोखा वक्ता दे सके। यह सब तत्क्षण होना चाहिए। ऐसा नहीं कि आज देखा और दो दिन बाद पहचाना। यदि प्रज्ञा इतनी सूक्ष्म हुई और पहचान इतनी प्रामाणिक हुई तो आगे का कार्य बहुत आसान एवं सुचारु रूप से हो सकता है। इस प्रकार उपदेश के तीन हिस्से हुए-1. वह पुरुष कैसा है, 2. उसकी आस्था किसके प्रति है, 3. दोनों बातों का सम्यक् ज्ञान प्राप्त कर, दिया गया योग्य उपदेश।
- आस्था : आस्था सभी में होती है, किसी की आस्था सत्य के प्रति होती है तो किसी की आस्था असत्य के प्रति। इसलिए जीव को दर्शन रहित नहीं कहा। या तो वह सम्यक् दृष्टि है या फिर वह मिथ्या-दृष्टि है। वक्ता को यह देखना चाहिए कि