Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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अध्यात्मसार : 6
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उच्चता और बड़प्पन का आधार
व्यक्ति जितना दूसरों की संभाल रख सकता है या दूसरों का खयाल रख सकता है, उतना ही उसके बड़प्पन का विकास होता है। संभाल कब रख सकता है, जब वह प्रभुता से, सामर्थ्य से युक्त हो। . सामर्थ्य : ज्ञान से, दर्शन से, चारित्र से और तप से आत्म-शक्ति आती है। आचार्य को भी यही करना चाहिए। संघ की बात संघ में ही रखनी चाहिए। श्रावकों को बताना उचित नहीं। आजकल जो हो रहा है, वह ठीक नहीं है। संघ का संचालन आचार्य को साधुओं के माध्यम से करना चाहिए। आचार्य केवल पद बनकर न रह जाए, अपितु उस पद का प्रयोग साधु के साथ सम्बन्ध रखने में होना चाहिए। इतनी विशाल दृष्टि हो कि मैं सबके लिए जिम्मेदार हूँ, सबका विकास मेरा विकास है।
जब कोई साध्वाचार से पूर्णतः विचलित हो जाए, तब भी श्रावकों को कुछ भी नहीं कहना। उन्हें पूछने की कुछ आवश्यकता नहीं है कि अब हम क्या करें। जैसा कि वर्तमान में हो रहा है। पहले श्रावकों को बुलाते हैं, फिर निर्णय करते हैं। ऐसा करना उचित नहीं है। साधु धर्म से जो विचलित हुआ है, उसके स्थिरीकरण के लिए गणनायक को प्रयत्न करने स्वयं या स्थविर के द्वारा जैसे पहले बताया गया। फिर भी स्थिरीकरण न हो तो उसे श्रावक-धर्म समझाना, आगे उसके परिणाम (निकालना) लेकिन निर्णय स्वयं गणनायक को ही करना चाहिए।
श्रावकों के साथ सम्बन्ध : . धर्म कथा एवं शुद्ध आहार, वस्त्र इत्यादि दान से श्रावकों के साथ साधु का सम्बन्ध रहता है। जहाँ पर भी धर्मोपदेश देकर धर्म जागरण हो सके एवं जहाँ पर भी गवेषणा करके संयम अनुष्ठान हेतु शुद्ध भिक्षा मिल सके, उतना ही हमारा श्रावकों के साथ सम्बन्ध है। इससे अधिक सम्बन्ध रखने से जैसा संग वैसा रंग चढ़ता है।
धर्मकथा एवं प्रवंचन का रूप. : प्रशिक्षण धर्मकथा स्वाध्याय का पंचम अंग है। धर्मकथा को केवल एक साधारण प्रवचन का रूप न देकर, प्रशिक्षण शिविर का रूप दे सकते हैं। जो भी विषय आप लेना