Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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द्वितीय अध्ययन, उद्देशक 6
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• मूलम्-दुव्वसुमुणी अणाणाए, तुच्छए गिलाइ वत्तए, एस वीरे पसंसिए, अच्चेइ लोयसंजोगं, एस नाए पवुच्चइ॥101॥
छाया-दुर्वसुमुनिः अनाज्ञया तुच्छः ग्लायति वक्तुम् एष वीरः प्रशंसितः अत्यति लोकसंयोगं एष न्यायः प्रोच्यते।
पदार्थ-दुव्वसु-दुर्वसु । मुणी-मुनि। अणाणाए-आज्ञा के बिना-दुःखों को संवेदन करता है। तुच्छए-ज्ञानादि शून्य, वह। गिलाइ वत्तए-शुद्ध मार्ग की प्ररूपणा करने में ग्लानि पाता है। किन्तु जो साधक शुद्ध मार्ग की प्ररूपणा करता है। एस वीरे-वह वीर। पसंसिए-प्रशंसित है, और। लोए-लोक। संजोगं-संयोग को। अच्चेइ-छोड़ देता है। एस-यह। नाए-न्याय-संगत। पवुच्चइ-कहा जाता है। ____ मूलार्थ-जो साधक मोक्षमार्ग पर गति करने के योग्य नहीं है, वह आज्ञा से बाहर है और ज्ञानादि से भी रहित है। अतः वह शुद्ध मार्ग की प्ररूपणा करने में ग्लानि का अनुभव करता है। परन्तु प्रबुद्ध साधक वास्तविक मार्ग को बताने में नहीं सकुचाता। इसलिए वह वीर प्रशंसनीय है और वह लोक के संयोग से भी मुक्त हो जाता है। ऐसा कहना न्यायसंगत कहा जाता है।
हिन्दी-विवेचन __ . आगम में कहा गया है कि 'आणाए धम्म' अर्थात् भगवान की आज्ञा में धर्म है। इस पर प्रश्न हो सकता है कि आज्ञा में कौन है? . इसी प्रश्न के समाधान में कहा गया है कि जो मोक्ष के योग्य है, वही भगवान की आज्ञा में है। मोक्ष की योग्यता सम्यग् दर्शन, ज्ञान और चारित्र पर आधारित है। इससे स्पष्ट हो गया कि जिस व्यक्ति को सम्यग् ज्ञान का आलोक नहीं, वह अज्ञान के अन्धकार में इधर-उधर टकराता फिरेगा, किन्तु मोक्ष मार्ग पर गति नहीं कर सकेगा। क्योंकि उसे उस मार्ग का ज्ञान ही नहीं और जब ज्ञान ही नहीं, तब उस पर चलने का तो प्रश्न ही नहीं उठता, इसलिए यह कहा गया कि सम्यग् ज्ञान से रहित व्यक्ति भगवान की आज्ञा में नहीं है और ज्ञानाभाव के कारण ही वह शुद्ध मार्ग की प्ररूपणा करने में हिचकिचाता है। इसके विपरीत ज्ञानसंपन्न व्यक्ति भगवान की