Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध
प्रश्न-इस विवेचन से मन में यह जानने की इच्छा होती है कि कर्मों को सर्वथा क्षय करने में निपुण एवं बन्ध मोक्ष का अन्वेषक पुरुष छद्मस्थ है या वीतरागसर्वज्ञ है? ___उत्तर-इसका समाधान यह है कि ऐसा व्यक्ति छद्मस्थ ही हो सकता है, न कि केवली। क्योंकि उक्त विशेषण केवली पर घटित नहीं होते हैं। इसलिए उसे असर्वज्ञ ही समझना चाहिए।
इसके अतिरिक्त 'कुसले' शब्द केवली और छद्मस्थ दोनों का परिचायक है। यदि उसका अर्थ यह करें कि जिसने घातिक कर्मों का सर्वथा क्षय कर दिया है; उसे कुशल कहते हैं तो कुशल शब्द तीर्थंकर या सामान्य केवली का बोधक है और जब इसका यह अर्थ करते हैं-जो मोक्षाभिलाषी है और कर्मों को क्षय करने का उपाय सोचने एवं उसका प्रयोग करने में संलग्न है, उसे कुशल कहते हैं तो कुशल शब्द से छद्मस्थ साधक का बोध होता है।
इसके अतिरिक्त केवली ने चारों घातिककर्मों का क्षय कर दिया है, इसलिए वह कर्मों से आबद्ध नहीं होता, परन्तु अभी तक उसमें भवोपग्राही-वेदनीय; नाम गोत्र और आयु कर्म का सद्भाव है, अतः वह मुक्त भी नहीं कहलाता। इसलिए 'कुसले' शब्द के आगे 'नो बद्धे न मुक्के' शब्दों का प्रयोग किया गया है। परन्तु छद्मस्थ साधक के अर्थ में कुशल शब्द का अर्थ-ज्ञान, दर्शन और चारित्र को प्राप्त करके उस पथ पर गतिशील साधक है । मिथ्यात्व एवं कषाय के उपशम से उसकी आत्मा में ज्ञान का उदय है, इसलिए वह संसार में परिभ्रमण कराने वाले मिथ्यात्व आदि से बद्ध नहीं है; परन्तु अभी तक उसने उनको क्षय नहीं किया है, उनका अस्तित्व है, इसलिए वह मुक्त भी नहीं है।
बद्धस्पृष्ट निधत्त निकाचित रूपां तदपनयनोपायं च वेत्तीत्येतदभिहितं, अनेन चापनयना
नुष्ठानमिति न पुनरुक्त दोषानुषंगः प्रसजति। 1. कुशलोऽत्र क्षीणघातिकर्माशो विवक्षितः स च तीर्थकृत सामान्य केवली वा छद्मस्थो हि
कर्मणा बद्धो मोक्षार्थी तदुपायान्वेषकः, केवली तु पुनर्घातिकर्म क्षयान्नो बद्धो भवोपग्राहिकर्मसद्भावान्नो मुक्तः कुशलः-अवाप्त ज्ञान दर्शन चारित्रो मिथ्यात्वद्वादश कषायोपशमसद्भावात् तदुदयवानिव न बद्धोऽद्यापि तत्सत्कर्मतासद्भावान्नो मुक्त इति।
-आचारांग वृत्तिः.