Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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अध्यात्मसार:5
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इसका अर्थ यह है जो साधक कल्पातीत अवस्था को प्राप्त हुए हों, वे ही आचार्य, उपाध्याय पद के लिए योग्य हैं।
स्थविर तीन प्रकार के-1. दीक्षा स्थविर, 2. वय स्थविर एवं 3. श्रुत स्थविर।
दीक्षा स्थविर : दीक्षा स्थविर का अर्थ है जिसकी दीक्षा बीस वर्ष या उससे अधिक। इसके पीछे यह अर्थ है कि यदि कोई साधक किसी सुयोग्य आत्म-ज्ञानी गुरु की नेश्राय में सुचारु रूप से साधना करता है तो 20 वर्ष के अन्तर्गत वह कल्पातीत हो ही जाएगा। बीस वर्ष भी बहुत अधिक हैं। वस्तुतः आत्म-ज्ञानी गुरु के सान्निध्य में तो साधक बहुत ही जल्दी पहुँच सकता है। .. श्रुत स्थविर : इसी प्रकार सद्गुरु की सन्निधि में श्रुत-मार्ग पर बढ़ते हुए व्यक्ति कल्पातीत अवस्था को प्राप्त हो जाता है और इतना श्रुत-अध्ययन करते हुए उसे 15 से 20 वर्ष अपने आप लग जाएंगे।
वय स्थविर : वय स्थविर के सम्बन्ध में वर्तमानकालीन अवस्थाओं में कोई विशेष योग्यताएं आवश्यक नहीं हैं। केवल वय के आधार पर ही वे कल्पातीत हो जाते हैं, क्योंकि 60 वर्ष की उम्र के पश्चात् शरीरबल क्षीण होकर इन्द्रियाँ शिथिल हो जाती हैं। इस कारण स्थविर सम्बन्धी विशेष योग्यताएं न होते हुए भी, संयम मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए वे विशेष परिस्थितियों में अपवाद मार्ग ग्रहण कर सकते हैं। इस प्रकार वे वय के आधार पर कल्पातीत हैं।
मूलम् : से तं जाणह जमहं बेमि, तेइच्छं पंडिए पवयमाणे से हंता छित्ता भित्ता लुम्पइत्ता विलुप्पइत्ता उद्दवइत्ता, अकडं करिस्सामित्ति मन्नमाणे, जस्सवि य णं करेइ, अलं बालस्स संगेणं, जे वा से कारइ बाले, न एवं अणगारस्स जायइ, त्तिवेमि॥ 1/2/5/96
मूलार्थ : जो मैं कहता हूँ उसको जानो तथा धारण करो, कामचिकित्सा का उपदेशक पांडित्याभिमानी व्यक्ति, जीवों का हनन करता है, छेदन करता है, भेदन करता है, लूटता है, गला काटता है और प्राणों का विनाश करता है, और मैं अकृत जिसे अभी तक किसी ने नहीं किया है, ऐसा काम करूँगा, इस प्रकार मानता हुआ अपनी या पर की अथवा दोनों की चिकित्सा करता है। इस प्रकार काम-चिकित्सा