Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध
पसीना सुखाने के लिए नंगे शरीर धूप में जा खड़ा होता है । वह समझता है कि भीगे हुए वस्त्रों की तरह धूप मेरे पसीने को सुखा देगी। परन्तु परिणाम इसके विपरीत देखने में आता है, अर्थात् पसीना सूखने के स्थान में और अधिक आने लगता है । यही स्थिति भोगों से दुःख दूर करने वाले अज्ञानी जीवों की होती है। उससे दुःख कम नहीं होते, अपितु बढ़ते हैं। क्योंकि दुःख का मूल कारण राग-द्वेष आसक्ति एवं मोह है और विषय-भोग एवं भौतिक ऐश्वर्य को संप्राप्त करने से उसका प्राबल्य रहता है । अतः उससे दुःखों की एवं जन्म-मरण की परम्परा में अभिवृद्धि होती है। ऐसा समझकर साधक को भोगों से सदा दूर रहना चाहिए । 'त्ति बेमि' का अर्थ पूर्ववत् ही समझें ।
॥ तृतीय उद्देशक समाप्त ॥
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