Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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द्वितीय अध्ययन, उद्देशक 4
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थीभि लोए पव्वहिए, ते भो! वयंति एयाइं आययणाई, से दुक्खाए मोहाए माराए नरगाए नरगतिरिक्खाए, सययं मूढ़े धम्म नाभिजाणइ उदाहु वीरे, अप्पमाओ महामोहे, अलं कुसलस्स पमाएणं, संतिमरणं संपेहाए भेउरधम्मं, संपेहाए, नालं पास अलं ते एएहिं॥85॥ ___ छाया-आशां च छन्दं च विवेक्ष्व धीर! त्वमेव तच्छल्यमाहृत्य येन स्यात् तेन नो स्यात् इदमेव नावबुध्यन्ते ये जनाः महोप्रावृत्ताः, स्त्रीभिः लोकः प्रव्यथितः ते भो! वदन्ति एतानि आयातनानि, एतद् दुःखाय, मोहाय, माराय, नरकाय नरकतिरश्चे (नरक तिर्यग् योन्यर्थम्) सतत मूढो धर्म नाभि-जानाति उदाह-वीरः अप्रमादः महामोहे अलं कुशलस्यप्रमादेन शांति मरणं संप्रेक्ष्य भिदुर-धर्मं संप्रेक्ष्य नालं पश्य अलं ते (तव) एभिः। ____पदार्थ-धीरे-हे धीर पुरुष! तू। आसं च-भोग आकांक्षा। छन्दं च-और भोगों के संकल्प को। विगिंच-त्याग दे। तुमंचेव-तू ही। तं सल्लमाहटु-उस भोगेच्छा रूप कांटे को स्वीकार करके दुःख पा रहा है। जेण सिया-जिस धन-संपत्ति आदि साधन से भोगोपभोग प्राप्त हो सकते हैं। तेण नो सिया-उस धन से वे नहीं भी प्राप्त होते हैं। जे जणा-जो मनुष्य। मोह पाउड़ा-मोह से आवृत्त हैं। इणमेव-इस तत्त्व को। नावबुज्झन्ति-नहीं जानते हैं। थीभि-स्त्रियों द्वारा। लोए-लोक। पव्वहिए-दुःखित हैं। ते-वे कामी पुरुष । वयंति-कहते हैं। भो-हे मनुष्यो! एयाइं-ये स्त्री आदि। आययणाई-भोगोपभोग के स्थान हैं। से-उनका यह कहना। दुक्खाए-दुःख के लिए। मोहाए-मोह की अभिवृद्धि करने के लिए। माराए-मृत्यु के लिए। नरगाए-नरक के लिए। नरग तिरिक्खाए-नरक के पश्चात् तिर्यंच गति के लिए होता है। सययं-निरन्तर। मूढे-मूढ़ बना हुआ जीव। धम्म-धर्म को। नाभिजाणइ-नहीं जानता है। वीरे-वीर प्रभु ने। उदाहु-दृढ़ता पूर्वक कहा है कि। अप्पमाओ-प्रमाद नहीं करना चाहिए। महामोहो-महा मोह की कारणभूत स्त्रियों के साथ (आसक्ति रूप) प्रमाद का सेवन नहीं करना चाहिए। अलं कुसलस्स पमाएण-बुद्धिमान व्यक्ति को प्रमाद से दूर रहना चाहिए। संति मरणं-शान्ति-मुक्ति और मरण संसार का। संपेहाए-विचार करके, तथा। भेउरधम्म-इस शरीर की विनश्वरता का। संपेहाए-विचार करके, प्रमाद का