Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध
स्वीकार करने के लिए कहे और न दोष युक्त आहार लेने वाले का समर्थन ही करे। परन्तु सदा-सर्वदा निर्दोष आहार को स्वीकार करके भाव पूर्वक संयम-साधना में संलग्न रहे। हिन्दी-विवेचन
प्रस्तुत सूत्र में संयम-मार्ग में प्रवर्त्तमान अनगार को निर्दोष आहार की गवेषणा करने एवं संयम-मार्ग की क्रियाओं के परिपालन करने का सामान्य रूप से उपदेश दिया गया है। और साधक को इस बात के लिए सावधान किया गया है कि वह त्रि-करण और त्रि-योग से सदोष आहार का त्याग करके शुद्ध संयम में प्रवृत्ति करे।
प्रस्तुत सूत्र में प्रयुक्त ‘समुट्ठिए' शब्द का अर्थ है-सम्यक्तया उत्थितः अर्थात् सम्यक् प्रकार से संयममार्ग में प्रवृत्ति करने वाला साधक। संयममार्ग में प्रवर्त्तमान होकर जिस मुनि ने घर-परिवार एवं धन-वैभव आदि का सर्वथा त्याग कर दिया है, उसे अनगार कहते हैं। आर्य वह है-जिसने त्यागने योग्य धर्म-अधर्म का त्याग कर दिया है और श्रुत के अध्ययन से जिसकी बुद्धि शुद्ध एवं निर्मल हो गई है, उसे आर्यप्रज्ञ कहते हैं। सत्य एवं न्याय मार्ग के द्रष्टा को आर्यदर्शी कहते हैं। 'अयसंधिति' का तात्पर्य है-साधु जीवन की समस्त क्रियाओं को यथाविधि एवं यथासमय अर्थात् जिनके लिए आगम में जिस उपाय एवं समय का विधान किया है-तद्रूप उसका आचरण करने वाला।
'आमगन्धं' शब्द का अशुद्ध एवं आधाकर्म आदि दोष अर्थ किया गया है। 'आम' शब्द प्रायः सभी भारतीय परम्पराओं में प्रयुक्त हुआ है। वैदिक ग्रंथों में यह शब्द अपक्व अन्न आदि के लिए प्रयुक्त हुआ है और पांलि ग्रंथों में इसका पाप के अर्थ में प्रयोग किया गया है, शारीरिक रोग की भांति पाप भी आध्यात्मिक रोग है। इस अपेक्षा से 'निराम' का अर्थ होगा-निष्पाप, क्लेश रहित और 'आमगन्धं' का अर्थ होगा पाप की गन्ध। किन्तु टीकाकार ने प्रस्तुत सूत्र में प्रयुक्त ‘आमगन्ध' का 1. अयंसंधीति-सन्धानं-सन्धीयते वाऽसाविति सन्धिः, अयं सन्धिर्यस्य साधो रसावर्यसन्धिः
छान्दसत्वाद्विभक्तेरलुगित्य- सन्धिः-यथाकालमनुष्ठानविधियी, यो यत्र वर्तमानः कालः कर्त्तव्यतयोपरिस्थितस्तत्करणतया तमेव सन्धत इति।
-आचारांग वृत्ति।