Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध
और भविष्य क्या है, इस परिस्थिति का कारण और परिणाम क्या है-दीर्घद्रष्टा दोनों को जान लेता है। जैसे
आचारांग सूत्र के प्रथम अध्ययन के प्रथम उद्देशक में कहा गया है कि अनेक जीवों को यह ज्ञान नहीं होता कि मैं कहाँ से आया हूँ और मैं कहाँ जाने वाला हूँ। वर्तमान में मैं जो कर्म कर रहा हूँ, मैं जहाँ पर हूँ, उसका कारण क्या है? उसका परिणाम क्या है? जैसे चण्ड कौशिक की तरह कोई व्यक्ति बहुत क्रोध कर रहा है। तब दीर्घ द्रष्टा उसके क्रोध को ही नहीं देखता, अपितु वह यह भी देखता है कि इसके पीछे उसके पूर्व जन्म के संस्कार क्या है? आगे उसके इस कर्म का क्या परिणाम
आने वाला है? इसलिए भगवान महावीर को चण्डकौशिक के क्रोध के प्रति क्रोध नहीं जागा, अपितु उसके क्रोध के प्रतिदान में उसे प्रतिबोध दिया। ___ इसी प्रकार संगम ने भगवान को बहुत परीषह दिये। लेकिन भगवान ने केवल उसके वर्तमान को नहीं देखा। उसके भूत और भविष्य दोनों को देखा और करुणा जागी। केवल वर्तमान को देखेंगे तब क्रोध जाग सकता है। लेकिन इस प्रकार कारण
और परिणाम दोनों को जानने पर करुणा ही जागती है। इस प्रकार इस बात को पुनः-पुनः समझना आवश्यक है।
दीर्घद्रष्टा-आत्मज्ञानी से लेकर केवलज्ञानी तक कोई भी दीर्घद्रष्टा हो सकता है। इसके अनंत अर्थ हैं। ऐसा दीर्घद्रष्टा साधक से लेकर सिद्ध तक कोई भी हो सकता है। इस प्रकार दीर्घद्रष्टा, अर्थात् जो साधारण मनुष्य से कुछ अधिक देखता है। साधारण व्यक्ति केवल इन्द्रियों में जीता है। दीर्घद्रष्टा इन्द्रियों से परे भी देखता है।
गुरु दीर्घद्रष्टा होते हैं : उनके पास वह दीर्घदृष्टि है जिसके माध्यम से शिष्य जिसे कल जानेगा, गुरु उसे आज ही जान लेते हैं। शिष्य की वृत्तियों का मूल कारण क्या है और इसका परिणाम क्या होगा, गुरु यह भी जान लेते हैं। शिष्य के अन्तर का जो रोग है, जो भूल है, अब इन रोगों में सभी रोग आ गये। दुःख, क्लेश, जन्म-मरण इत्यादि सारे रोग। इन सबकी दवा गुरु ही कर सकते हैं; क्योंकि गुरु उस रोग के मूल कारण को जानते हैं। ऊपर-ऊपर से कारण कुछ दिखाई देते हैं, लेकिन मूल में कारण कुछ और हैं। जैसे चिकित्सक मूल कारण जानकर ही चिकित्सा कर