Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
द्वितीय अध्ययन, उद्देशक 4
373
वीर पुरुष ही निर्भय हो सकता है। उसे संसार के किसी भी कोने में किसी भी प्रकार का भय नहीं रहता। वह निर्भयता का देवता स्वयं निर्भय बनकर संसार को निर्भय बनाता हुआ यत्र-तत्र-सर्वत्र शांत भाव से विचरण करता है। अतः साधक को विषयों की आसक्ति का त्याग करके निर्भय बनना चाहिए।
प्रस्तुत सूत्र में अभिव्यक्त मुनिवृत्ति को ‘मोणं'–मौन शब्द से व्यक्त किया गया है। क्योंकि प्रतिकूल परिस्थिति के उपस्थित होने पर भी मुनि न तो मन में किसी प्रकार के संकल्प-विकल्प लाता है और न वाणी द्वारा उसे व्यक्त करता है। अतः मुनित्व की साधना को मौन कहा गया है-'मुनेरिदं मौनं-मुनिभिर्मुमुक्षुभिराचरितम्' इत्यादि।
'त्तिबेमि' का अर्थ पूर्व उद्देशक की तरह ही समझना चाहिए।
॥चतुर्थ उद्देशक समाप्त॥