Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध
व्याकुल बना देती है, तब उस व्याकुलता के वश सामान्य परिस्थिति समस्या का रूप धारण कर लेती है ।
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सारी शरण छोड़ दे और केवल धर्म की शरण में आ जाए, यही साधक का लक्षण है। व्यक्ति साधक है या संसारी, यही इसका लक्षण है । एक तो है संसार और दूसरा है साधना का पथ । साधना की शुरूआत कब होती है, संसार से साधना में छलांग कब लगती है? जब व्यक्ति की समझ में यह आ जाए कि केवल धर्म ही शरण है। ऐसे कहने को तो सभी कहते हैं कि हम धर्म की शरण में हैं। ऊपर से कहते हैं कि हम शरण में हैं, परन्तु भीतर से उनको यही लगता है कि अभी धन के बिना नहीं चल सकता, बिना परिवार एवं बच्चों के मेरी सेवा कौन करेगा? बिना पद के मुझे कौन पूछेगा ?
यहाँ तक कि जो साधु हैं, वे भी कहते हैं कि मेरी प्रतिष्ठा नहीं होगी तो मुझे कौन पूछेगा। कभी-कभी ऐसा विचार भी आ जाता है कि मुझे आहार कौन देगा। बिना भक्त के, बिना समाज के, बिना पद के, मैं साधना कैसे कर सकता हूँ? इस विचार के कारण आज साधुओं में इतनी विसंगति है । जैसे जिनके भक्त हैं वैसे ही चल जाता है। उनको साधना पर विश्वास नहीं है । कहने के लिए वे भी कहते हैं कि अरिहंत देव महान हैं, धर्म जीवन का अंग है। चार ही शरण हैं । परन्तु उनका जीवनबताता है कि वे अरिहंत और धर्म की शरण में नहीं हैं। उनका जीवन तो यही दर्शाता है कि मेरा पद, मेरी प्रतिष्ठा, मेरा समाज, मेरे भक्त ही मेरी शरण हैं, वे ही मेरी रक्षा करेंगे। इस अज्ञानवश ऐसे साधक अनेकानेक आधि-व्याधि एवं उपाधि को जन्म देते हैं। धर्म के नाम विसंगति एवं भ्रान्ति का पोषण करते हैं और अनेक बार गृहस्थ की कामना पूर्ति के लिए अपनी साधना को भी दाँव पर लगा देते हैं ।
ऐसे साधक धर्म के नाम पर बहुत बड़ा कलंक हैं । इसीमें धर्म और शासन की हानि है।
व्यक्ति धर्म की शरण में आ जाए, उसे यह समझ में आ जाए कि धर्म ही एक मात्र शरण है, इस हेतु क्या उपाय है ? सर्वप्रथम व्यक्ति को आत्मनिरीक्षण करते हुए प्रामाणिक होना चाहिए । यदि अरिहन्त देव के प्रति विश्वास नहीं है, मन भीतर से, धन, पद इत्यादि साधनों की शरण में है, तब यही कहें कि मुझे विश्वास नहीं है,