Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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अध्यात्मसार : 3
जाईमरणं परिन्नाय : वह जन्म और मरण को परिज्ञात कर लेता है, परिपूर्ण रूप से जान लेता है। जो ध्रुव को जान लेता है, वह उत्पाद और व्यय दोनों को जान ता है। लेकिन जो केवल उत्पाद को देखता है, वह अधिक-से-अधिक व्यय को देखता है। ध्रुव को जान भी सकता है और नहीं भी जान सकता। इसी प्रकार जो व्यय को देखता है, वह अधिक-से-अधिक उत्पाद को देखता है, पर जो ध्रुव को देखता है, वह उत्पाद-व्यय दोनों को जान लेता है । इसलिए जो स्वभाव को जान लेता है, वह जाई मरणं - जन्म-मरण दोनों का परिज्ञान कर लेता है । इस प्रकार दोनों को जान लेता है, वह धर्म पर दृढ़ होकर आचरण कर लेता है, क्योंकि हमारा मन, हमारे कर्म संस्कार सदा ही पर्याय में आसक्त और मग्न रहते हैं । पर्याय देह की, पर्याय संकल्प और विकल्प' रूप विचारों की । इसलिए साधक को ध्रुव में दृढ़ रहना होगा। संकल्प-विकल्पों में न उलझकर स्वभाव में स्थिरता रखनी होगी ।
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नत्थि कालस्स णागमो : बीता हुआ काल पुनः लौटकर आने वाला नहीं । यहाँ पर संयम की दुर्लभता बताई है । जितनी ध्रुव की आराधना कर सको, उतनी कर लेनी चाहिए; क्योंकि पुनः पुनः ध्रुव में रमण करने का अवसर नहीं मिलता ।
सभी प्राणियों को सुख -साता प्रिय है। इस प्रकार सभी प्राणी मूलतः ध्रुव तक पहुँचना चाहते हैं, लेकिन वह सुख - साता और जीवन को अध्रुव में ही ढूँढते हैं । वस्तुतः सुख-साता और जीवन कहाँ पर है? ध्रुव में है लेकिन हम कहाँ पर ढूँढते हैं अध्रुव में । यही हमारा अज्ञान है ।
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नत्थि कालस्स णागमो : यह काल पुनः लौटकर आने वाला नहीं है । इसीलिए कहा गया है 'खणं जार्णा सो पंडिए' पंडित व्यक्ति क्षण को - उचित अवसर को जानकर उसका उपयोग कर लेते हैं, क्योंकि साधना योग्य अवसर पुनः पुनः नहीं आते हैं । जब सारे संयोग अनुकूल होते हैं, तब कहीं अनन्त जन्मों के पश्चात् साधना का अवसर आता है। इसलिए जब भी ऐसा अवसर आये, उसका उपयोग कर लेना चाहिए। उसके आगे जो स्थिति बतायी गयी है कि जो द्विपद, चतुष्पद इत्यादि प्रकार के परिग्रह को व्यक्ति एकत्रित करता है । जैसे पहले कहा था, देहासक्ति से इन्द्रियासक्ति, इन्द्रियासक्ति से विषयासक्ति को पूर्ण करने वाले, साधनों के प्रति आसक्ति ।
अध्रुव क्या है ? यह देह । अध्रुव अर्थात् - आज देह का संयोग है कल नहीं भी