Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध
छूट जाऊंगा, इस आशय से पापकर्म किया जाता है । अदुवा - अथवा । आसंसाएअप्राप्त वस्तु की प्राप्ति हो जाए इस इच्छा से पाप कर्म में प्रवृत्ति होती है ।
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मूलार्थ - लोभ बिना दीक्षा लेकर, अर्थात् लोभ के सर्वथा दूर हो जाने से दीक्षित हुआ व्यक्ति चारों ही घाति कर्मों का क्षय करके केवल ज्ञान से युक्त होकर सर्व पदार्थों के सामान्य और विशेष धर्मों का बोध प्राप्त करता है, सर्वज्ञ सर्वदर्शी हो जाता है, कषायों के गुण-दोषों का विचार करके लोभादि की इच्छा नहीं करता। इस प्रकार वह अनगार कहलाता है और इसके विपरीत जो अज्ञ है और वह दिन-रात संतप्त हृदय होता हुआ काल और अकाल में उठने वाला, संयोग का अर्थी, धन का लोभी, गला काटने वाला, बिना विचारे काम करने वाला, धन और स्त्री में आसक्ति रखने वाला, षट्काय में बारम्बार शस्त्र का प्रयोग करने वाला निम्नलिखित कारणों को मुख्य रखकर हिंसादि कर्म में प्रवृत्त होता है; यथा - मेरी आत्मशक्ति बढ़ेगी, मेरी जाति का बल बढ़ेगा, मेरा मित्रबल बढ़ेगा, मेरा परलोक बल बढ़ेगा, मेरा देवबल बढ़ेगा, मेरा राजबल बढ़ेगा, मेरा चोरबल बढ़ेगा, मेरा अतिथिबल बढ़ेगा, मेरा कृपणबल बढ़ेगा और मेरा श्रमणबल बढ़ेगा, इन पूर्वोक्त विविध प्रकार के कार्यों से प्रेरित हुआ वह प्राणियों के वध में प्रवृत्त होता है एवं जब तक मैं ऐसा नहीं करूंगा तब तक मेरा आत्मबल नहीं बढ़ेगा, इस प्रकार विचार कर तथा भय के वशीभूत होकर वह पाप कर्म करता है या यह सोचकर वह उक्त पाप कर्मों का आचरण करता है कि इस प्रकार के आचरण से मैं दुःखों से मुक्त हो जाऊंगा, या यों कहिए कि विभिन्न आशाओं के वशीभूत होकर वह पापकर्म करता है ।
हिन्दी - विवेचन
प्रस्तुत सूत्र में जीवन के प्रशस्त और अप्रशस्त उभय स्वरूप का विश्लेषण किया गया है । जो संसार से विरक्त होकर प्रव्रजित होता है और कषायों पर विजय पाता हुआ संयम में सदा संलग्न रहता है, वह ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय और अन्तराय कर्म का सर्वथा क्षय करके सर्वज्ञ और सर्वदर्शी बन जाता है । संसार के सभी पदार्थों को एवं तीनों काल के भावों को भली-भांति जानता - देखता है। उससे कोई भी बात प्रच्छन्न नहीं रहती है । इस स्थिति को प्राप्त करके सर्व कर्म बंधन मुक्त होना ही प्रत्येक साधक का लक्ष्य है। राग-द्वेष का क्षय करने पर ही यह स्थिति प्राप्त