Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध
लौटना चाहे तब भी व्रत खण्डित नहीं होते हैं । यह बात समस्त संघ को समझानी आवश्यक है।
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क्या दीक्षा हेतु मुहूर्त देखना जरूरी है?
ऐसे तो यह एक आध्यात्मिक साधना है, अतः मुहूर्त देखना नितान्त आवश्यक. नहीं है। फिर भी अभी काल का असर ऐसा है और कर्मों का उदय भारी है । अतः मुहुर्त देखना जरूरी है।
जाप हेतु - श्रद्धा, शुद्धि, एकाग्रता ।
शुद्धि - शरीर, वस्त्र एवं स्थान अशुचि से रहित ।
मूलम्-अणाणाए पुट्ठावि एगे नियट्टति, मंदा मोहेण पाउडा, अपरिहग्गहा भविस्सामो समुट्ठाय लद्धे कामे अभिगाइ, अणा मुणिणो पडिलेहंति, इत्थ मोहे पुणो- पुणो सन्ना नो हव्वाए नो
पाराए॥2/2/74
मूलार्थ - अज्ञान से आवृत, विवेकशून्य कितने एक कायर प्राणी परीषहों के उपस्थित होने पर वीतराग आज्ञा से विरुद्ध आचरण करके संयम मार्ग से च्युत हो जाते हैं और कई स्वेच्छाचारी व्यक्ति हम परिग्रही बनेंगे, इस तरह का विचार कर तथा दीक्षा लेकर भी प्राप्त काम-भोगों का सेवन करते हैं। ऐसे मुनि वेश धारी स्वच्छन्द बुद्धि से विषय - भोगों को प्राप्त करने के उपायों में संलग्न रहते हैं । वे विषय-भोग में आसक्त होने से मोह के कीचड़ में ऐसे फंस जाते हैं किन इधर के रहते हैं और न उधर के, अर्थात् न तो गृहस्थ रहते हैं और न साधु ही। वे उभय जीवन से भ्रष्ट हो जाते हैं ।
एक बार जब व्यक्ति पूरी तैयारी एवं संकल्प के साथ मुनि बन जाए तब तो यही देखना चाहिए कि अब साधना कैसे (दीपे ) हो सके। तब भूलकर भी भोगों की ओर नहीं देखना । विचार आ भी जाए, तब भी उसका संवर्धन नहीं करना । यदि संवर्धन करना होगा, तब वह वीतराग की आज्ञा के विरुद्ध जाना होगा । कम-से-कम वीतरागवाणी के अनुसार आचार पालन होता रहे तब इतनी भी स्थिरता रहने पर,