Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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द्वितीय अध्ययन, उद्देशक 3
343 शक्ति कम हो.जाती है या चोर लूट ले जाते हैं, नदी आदि के प्रवाह में बह जाता है, आग में जल जाता है या व्यापार में हानि हो जाती है। इस प्रकार. संपत्ति के स्थिर रहने का कोई निश्चय नहीं है और दूसरे यह जीवन भी अस्थिर है। कोई नहीं जानता कि काल किस समय आकर सारे बने-बनाए खेल को ही बिगाड़ दे। समस्त वैभव एवं परिवार यहीं पड़ा रहता है और व्यक्ति अगले लक्ष्य पर चल पड़ता है। उसकी समस्त अभिलाषाएं, भोगेच्छाएं मन में ही रह जाती हैं, सब भोग के साधन यहीं रह जाते हैं। वह तो केवल कर्मबन्धन का बोझ लेकर चल पड़ता है। अस्तु सम्यग् ज्ञान, दर्शन
और चारित्र के अभाव में व्यक्ति भोगेच्छा की पूर्ति के लिए अनेक पापकर्म करता है, विषय-वासना में आसक्त रहता है और कभी-कभी पापकर्म को बांध कर भी प्राप्त किए गए भोगों को भोग नहीं सकता। इसलिए साधक को इन भोगों से अलग रहना चाहिए। क्योंकि विषय-वासना में आसक्त व्यक्ति संसार में परिभ्रमण करता रहता है।
- प्रस्तुत सूत्र में प्रयुक्त 'ध्रुवचारिणो' का अर्थ है-"ध्रुवो मोक्षस्तत्कारणं च ज्ञानादि ध्रुवं तदाचरितुं शीलं येषां ते” अर्थात्-ध्रुव नाम मोक्ष का है, अतः उसके साधन भूत ज्ञानादि साधन भी ध्रुव कहलाते हैं। उनका सम्यक्तया आचरण करने वाला ध्रुवचारी कहलाता है। इसके अतिरिक्त 'धूत चारिणो' पाठान्तर भी मिलता है। इसका अर्थ है-'धुनातीति धूतं-चारित्रं तच्चारिणः' अर्थात्-कर्म रज को धुनने-झाड़ने वाले साधन को धूत कहते हैं। सम्यक् चारित्र से कर्म रज की निर्जरा होती है। अतः सम्यक्चारित्र को धूत कहा है और उसकी आराधना करने वाले मुनि को धूतचारी कहा गया है। __ “संकमणे दढे' पद का अर्थ है-संक्रम्यतेऽनेनेति संक्रमणं चारित्रं तत्र दृढ-विश्रोतसिकारहितः परीषहोपसर्गे निष्प्रकम्पः।” अर्थात्-संक्रमण चारित्र का नाम है। अतः परीषह एवं उपसर्ग उपस्थित होने पर भी दृढ़ता पूवर्क चारित्र का परिपालन करने वाले साधक को 'संकमणे दढे'-चारित्र में दृढ़ कहा जाता है। साधक की कसौटी परीषह के समय ही होती है। संकट के समय ही विचलित नहीं होने वाला मुनि ही आत्मसाधना के पथ पर आगे बढ़ता है।
_ 'सव्वे पाणा पियाउया सुहसाया......' आदि पाठ से यह स्पष्ट ध्वनित होता है कि भगवान महावीर के युग में हिंसा का प्राबल्य था। यों तो हर युग में हिंसक