Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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द्वितीय अध्ययन, उद्देशक 2
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इससे स्पष्ट हो जाता है कि थोड़े-से परीषहों से घबरा कर जो व्यक्ति पथ-भ्रष्ट होता है, वह एकदम पतन के गर्त में गिरता ही जाता है। अतः साधक को परीषहों के उपस्थित होने पर घबराना नहीं चाहिए। अनुकूल परीषहों में भी अपने पथ पर दृढ़ता के साथ गतिशील होना चाहिए। जो साधक रति-अनुकूल परीषहों पर विजय प्राप्त कर लेता है, वह कर्मबन्धनों को शिथिल करता हुआ एंव तोड़ता हुआ एक दिन कर्मबन्धन से मुक्त हो जाता है।
अतः वीतराग द्वारा उपदिष्ट मार्ग पर गतिशील व्यक्ति संसार-सागर से पार हो जाता है और उस पथ पर गति नहीं करने वाला साधक संसार-सागर में परिभ्रमण करता है, विभिन्न गतियों में महान दुःखों का संवेदन करता है। इसी बात को बताते हुए सूत्रकार कहते हैं- मूलम्-अणाणाए पुट्ठावि एगे नियटॅति, मंदा मोहेण पाउडा, अपरिग्गहा भविस्सामो समुट्ठाय लद्धे कामे अभिगाहइ, अणाणाए मुणिणो पडिलेहंति, इत्थ मोहे पुणो-पुणो सन्ना नो हव्वाए नो पाराए॥74॥
छाया-अनाज्ञया स्पृष्टा अपि एके निवर्तन्ते मन्दा मोहेन प्रावृताः अपरिग्रहाः भविष्यामः समुत्थाय, लब्धान् कामान् अभिगाहन्ते अनाज्ञया, मुनयः प्रत्युपेक्षन्ते, अत्र मोहे पुनः पुनः सन्ना नो अर्वाचे नो पाराय।
. पदार्थ-मन्दा-विवेक शून्य। मोहेण पाउडा-मोह से प्रावृत्त-घिरे हुए। एगे-कई एक प्राणी। पुट्ठा वि-परीषहों के आने पर। अणाणाय-आज्ञा से विपरीत हो कर। नियट्टन्ति-संयम से पतित होते हैं। अपरिग्गहा-परिग्रह रहित। भविस्सामो-बनेंगे। ऐसे वचन बोलकर। समुट्ठाय-दीक्षा लेकर । लद्धे कामे-प्राप्त हुए विषय-भोगों को। अभिग्गाहइ-सेवन करते हैं। अणाणाए-वीतराग की आज्ञा के विरुद्ध। मुणिणो-मुनि वेष को लजाने वाले। पडिलेहन्ति-कामभोगों के उपायों की शोध करते हैं। इत्थ मोहे-इस प्रकार मोह में। पुणो-पुणो-बार-बार। सन्ना-आसक्त होकर। नो हव्वाए-न इस पार के। नो पाराए-न उस पार के होते हैं।