Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध
क्या है। सत्य का अन्वेषण, सत्य की खोज, उस खोज के लिए प्रभु ने जो पथ बताया
है, उस पर निश्शंक विश्वास ।
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यह श्रद्धा कब आएगी?
1. सत्य को जानने की अभिरुचि ।
2. तत्त्व की पहचान करने की जिज्ञासा ।
3. उस तत्त्व तक पहुँचने का सही रास्ता कौन-सा है, यह बताने वाला निमित्त, जिनप्रणीत आगम अथवा सुसाधु या स्वयं अरिहंत देव ।
जब इन दोनों का मिलन होता है, तब श्रद्धा में दृढ़ता आती है ।
इसमें साधक की परीक्षा कब होती है, जब निमित्त का अभाव होता है । निमित्त के द्वारा दिया गया उपाय करने पर भी समाधान न मिलने पर शंका जागती है कि इतना किया पर फल नहीं मिला, वहीं पर साधक की परीक्षा है । उस समय साधक को समझना चाहिए कि मुझसे निमित्त को समझने में कहीं गलती हुई हैं और पुनः आत्म-निरीक्षण, सत्यान्वेषण करते हुए साधना में लग जाना चाहिए ।
श्रद्धा के 5 दूषण - 1. शंका, 2. कांक्षा, 3. वितिगच्छा, 4. परपाखण्ड सस्तवं, 5. पर पाखण्ड प्रशंसा। निश्चय में श्रद्धा पक्की तब होती हैं, जब किसी आत्मज्ञानी सद्गुरु के चरणों में निवास हो जाए ।
साधना में अनेक बार ऐसा भी होता है कि बहुत पराक्रम करने के बाद भी कभी-कभी ऐसा लगता है कि जैसे कुछ भी नहीं हुआ। उस समय श्रद्धा की आवश्यक होती है। उस समय सद्गुरु की आवश्यकता है, क्योंकि गुरु जो उसके वर्तमान को ही नहीं, वरन उसके भविष्य को भी देखता है । अतः उसके भविष्य को देखकर जैसे एक माँ बेटे को समझाती है कि थोड़ा और चलो तुम ठीक रास्ते पर हो, अभी घर आने वाला है, क्योंकि मुझे इस रास्ते का पता है और मैंने घर देखा है।
सद्गुरु कौन होता है? आत्मज्ञानी सुसाधु ।