Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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अध्यात्मसार : 3
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से की जाए, तब संवर और निर्जरा यदि आत्म प्रशंसा एवं अहं तुष्टि के लिए की जाए, तब आस्रव और बन्ध होता है ।
संयम से क्या?–संयम से देवगति एवं मनुष्य-गति एवं मोक्ष । संयम का पालन यदि राग-भाव सहित, यहाँ राग का अर्थ है, संयम के निमित्त सहयोगी बनने वाले व्यक्ति, वस्तु एवं परिस्थिति - जन्य राग किया जाए, तब इस प्रकार के सराग संयम से देवगति की प्राप्ति होती है ।
संयम का पालन यदि शुद्ध भावना, आत्मबोध के अनुभव सहित क्षायिक भाव, क्षायिक सम्यक्तव के साथ किया जाएं, तब मनुष्य गति एवं तदुपरान्त मोक्ष की प्राप्ति ।
शुभ भाव- मैत्री, करुणा, प्रमोद और वात्सल्य आदि ।
क्षायिक भाव : शुद्ध भाव - संकल्प - विकल्प रहित आत्म- रमण । शुभ भाव से देवगति, अशुभ भाव से नीच गति, शुद्ध भाव से मोक्ष गति ।
- साधु द्वारा
गोचरी - को यह पूछना कि यह पदार्थ किसके निमित्त बनाया गया है, यह एक प्रकार की मूढ़ता है। प्रसंगवश कभी यह पूछना अलग बात है किन्तु साधु को स्वयं ही इतना उपयोग लगाना चाहिए कि गृहस्थ ने यह पदार्थ किसके लिए बनाया हुआ है, स्वयं के लिए या श्रमण के लिए। जो भी आपके पूर्व स्नेहीजन आपके लिए यदि कुछ लेकर आएं, तब उन्हें आप समझा सकते हैं तो उन्हें जरूर समझाएं। यह उपयोग साधु को स्वयं लगाना चाहिए। यदि वह न समझ सके, तब उदाहरण के रूप में पाँच में से आधी या एक रोटी ले सकते हैं । इसमें भी दोष - तो लग सकता है, परन्तु इससे आगे उन्हें समझाना आसान हो जाएगा; अन्यथा उनके मन में किसी भी प्रकार की शंका या संदेह हो सकता है कि अब तक तो लेते थे, अचानक अब क्या हो गया ।
तब उन्हें समझाना है कि साधुजन अपने लिए बनाया हुआ आहार क्यों नहीं लेते, क्योंकि इससे नैमित्तिक दोष के रूप में हिंसा तो लगती ही है, लेकिन साथ ही समझने की बात यह है कि प्रत्येक आहार के साथ संस्कार जुड़े हुए हैं। अपने लिए अपने निमित्त बनाए हुए आहार को लेने से वे जुड़े हुए संस्कार भी आ जाते हैं ।
य़दि नियमानुसार 42 दोष टाल कर आहार- पानी लिया जाए तो आहार से जुड़े