Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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प्रथम अध्ययन, उद्देशक 6
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वसाए, पिच्छाए, पुच्छाए, वालाए, सिंगाए, विसाणाए, दंताए, दाढाए, णहाए, हारुणीए, अट्ठीए, अट्ठिमिंजाए अट्ठाए अणट्ठाए, अप्पेगे हिंसिंसु मेत्ति वा वहंति, अप्पेगे हिंसंति मेत्ति वा वहति, अप्पेगे हिंसिस्संति मेत्ति वा वहति॥54॥
छाया-सः (अहं) ब्रवीमि, अप्येके अर्चायै नवन्ति, अप्येके अजिनाय घ्नन्ति, अप्येके मांसाय घ्नन्ति, अप्येके शोणिताय घ्नन्ति एवं-हृदयाय, पित्ताय, वसायै, पिच्छाय, पुच्छाय, वालाय, शृंगाय, विषाणाय, दन्ताय, दंष्ट्रायै, नखाय, स्नायवे, अस्थने, अस्थिमज्जायै, अर्थाय-अनर्थाय, अप्येके हिंसितवन्तः मे इति वा घ्नन्ति, अप्येके हिंसंति मे इति वा घ्नन्ति, अप्येके हिंसिष्यंति मे इति वा घ्नन्ति।
पदार्थ-से-मैं वह। बेमि-कहता हूँ। अप्पेगे-कोई एक। अच्चाए-अर्चनादेवी-देवता की पूजा के लिए। हणंति-जीवों की हिंसा करते हैं। अप्पेगे-कोई एक। अजिणाए-चर्म के लिए। वहंति-जीवों का वध करते हैं। अप्पेगे-कोई एक। मंसाए वहंति-मांस के लिए प्राणियों को मारते हैं। अप्पेगे-कोई एक। सोणियाए वहति-खून के लिए वध करते हैं। एवं-इसी प्रकार, कोई। हिययाए-हृदय के लिए। पित्ताए-पित्त के लिए। वसाए-चर्बी के लिए। पिच्छाए-पिच्छ-पंख के लिए। पुच्छाए-पूँछ के लिए। बालाए-केशों के लिए। सिंगाए-शृंग-सींगों के लिए। विसाणाए-विषाण के लिए। दंताए-दांतों के लिए। दाढाए-दाढ़ों के लिए। णहाए-नाखूनों के लिए। ण्हारूणीए-स्नायु के लिए। अट्ठिए-अस्थिओं के लिए। अट्ठिमिज्जाए-अस्थि और मज्जा के लिए। अट्ठाए-किसी प्रयोजन के लिए। अणट्ठाए-निष्प्रयोजन ही। अप्पेगे-कोई एक। हिंसिंसु मे त्ति वा-इसने मेरे स्वजन-स्नेहियों की हिंसा की है, ऐसा मानकर। वहंति-सिंह, सर्प आदि जन्तुओं की हिंसा करते हैं। अप्पेगे-कोई एक। हिंसंति मेत्ति वा वहति-ये मुझे मारते हैं, ऐसा सोच कर सिंह-सर्प आदि का वध करते हैं। अप्पेगे-कोई एक। हिंसिस्संत्ति मेत्ति वा वहति-ये भविष्य में मुझे मारेंगे, ऐसा विचार कर के सिंह-सर्प आदि प्राणियों के प्राणों का नाश करते हैं।
मूलार्थ-हे शिष्य! मैं तुमसे कहता हूं कि इस संसार में अनेक जीव देवी-देवता