Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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प्रथम अध्ययन : शस्त्रपरिज्ञा
___ सप्तम उद्देशक
प्रस्तुत उद्देशक में, छह काय में अवशिष्ट वायुकाय का वर्णन किया गया है। जैसे पृथ्वी, पानी आदि अन्य स्थावरकाय सजीव हैं, उसी प्रकार वायुकाय भी सजीव हैं; सचेतन हैं। इसलिए उनका आरम्भ-समारम्भ भी कर्म-बन्ध का कारण है, संसारपरिभ्रमण एवं दुःख-परंपरा को बढ़ाने वाला है। अतः वायुकायिक जीवों के आरम्भ से निवृत्त होने वाला ही मुनि है। प्रस्तुत उद्देशक में इन्हीं बातों का विवेचन किया गया है। उसका आदि सूत्र निम्नोक्त है
मूलम्-पहू एजस्स दुगुंछणाए॥56॥
छाया-प्रभुः एजस्य जुगुप्सायाम्। - पदार्थ-एजस्स-वक्ष्यमाण गुणों वाला व्यक्ति वायुकाय के। दुगुंछणाए-आरम्भ का त्याग करने में। पहू-समर्थ होता है। ___मूलार्थ-हे शिष्य! वक्ष्यमाण गुणों वाला व्यक्ति वायुकायिक जीवों के आरम्भ से निवृत्त होने में समर्थ होता है। हिन्दी-विवेचन
वायुकायिक जीवों की हिंसा कर्म-बन्ध का कारण है। अतः कर्म-बन्ध से वही व्यक्ति बच सकता है, जो वायुकाय की हिंसा से निवृत्त होता है। इस पर यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि वायुकायिक जीवों की हिंसा से कौन निवृत्त होता है? इस प्रश्न का समाधान आगे के सूत्र में करेंगे। प्रस्तुत सूत्र में सूत्रकार ने संकेत मात्र किया है कि अगले सूत्र में जिस व्यक्ति के गुणों का निर्देश किया जाने वाला है, उन गुणों से संपन्न व्यक्ति ही वायुकाय के आरम्भ से निवृत्त होने में समर्थ है। ___ 'एज' शब्द वायुकाय के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। इसका प्रयोग वायुकाय की गति की अपेक्षा से हुआ है। क्योंकि ‘एज' शब्द 'एजृ कम्पने' धातु से बना है।