Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
268
श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध
संजोगट्ठी-संयोग का अभिलाषी। अट्ठालोभी-धन का लोभी। आलुंपे-गलकर्तन, चोरी-डाका आदि दुष्कर्म करता है। सहसाकारे-बिना सोचे-विचारे कार्य करने वाला। विणिविट्ठचित्ते-विभिन्न विषयों में जिसका मन संलग्न है। एत्थ-इन माता-पिता आदि परिजनों या शब्दादि विषयों में आसक्त बना व्यक्ति। सत्थे पुणो-पुणो-बार-बार शस्त्र से षट्काय की हिंसा करता है। च-और। खल-निश्चय से। इह-इस संसार में। एगेसिं-कितने एक। माणवाणं-मनुष्यों का। अप्पं आउयं-अल्प आयुष्य है। तंजहा-जैसे कि।
मूलार्थ-जो शब्दादि गुण हैं, वे मूलस्थान-कषाय रूप संसार का मूल कारण हैं और जो मूल स्थान हैं वही शब्दादि गुण हैं। इस तरह गुणार्थी विषयों का अभिलाषी व्यक्ति महान् परिताप एवं दुःखों का संवेदन करता हुआ बार-बार प्रमत्त होकर मोहरूप, रागद्वेष-रूप संसार में निवास करता है और राग-द्वेष में आसक्त वह कहता है कि यह मेरी माता है, मेरा पिता है, मेरा भाई है, मेरी बहिन है, मेरी पत्नी है, मेरी पुत्री है, मेरी पुत्रवधू है, मेरा मित्र स्वजन-स्नेही एवं विशिष्ट परिचित हैं, मेरे सुन्दर हाथी-घोड़े, ऐश्वर्य, विपुल खाद्य-सामग्री एवं वस्त्राभूषण हैं, उक्त पदार्थों में आसक्त बना प्राणी रात-दिन संतप्त रहता है, और काल या अकाल में अर्थात् प्रतिसमय अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए सावधान रहता है। वह धन का लोभी दूसरे का गला काटने या चोरी-डाका डालने जैसा दुष्कर्म करने एवं बिना सोचे-समझे अविवेक और दुर्विचारपूर्वक कार्य करने में संकोच नहीं करने वाला तथा येन-केन-प्रकारेण धन-उपार्जन करना ही जिसका ध्येय बना हुआ है, वह व्यक्ति बार-बार छह काय की हिंसा के लिए विभिन्न शस्त्रों का प्रयोग करता है और इस संसार में कई जीवों का आयुष्य बहुत थोड़ा होता है। जैसे किहिन्दी-विवेचन
प्रथम अध्ययन में एक सूत्र आया है 'जे गुणे से आवटे....' अर्थात् जो गुण हैं, वही आवर्त्त हैं। इस सूत्र की प्रस्तुत सूत्र के इस वाक्य से-जो गुण हैं वे मूलस्थान हैं और जो मूलस्थान हैं, वे गुण हैं-तुलना करते हैं; तो गुण को आवत-संसार कहने का कारण स्पष्टतः समझ में आ जाता है। संसार का मूल कषाय है और कषाय के आश्रय ये गुण हैं, अतएव गुण को संसार कहना उपयुक्त ही है। क्योंकि गुणों में