Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
प्रथम अध्ययन, उद्देशक 7
परिज्ञा से जानकर । मेहावी - बुद्धिमान । णेव संय- न तो स्वयं । वायु- सत्थं - वायु शस्त्र द्वारा। समारंभेज्जा - समारंभ करे और । णेवण्णेहिं-न दूसरों से । वाउसत्थं - वायु शस्त्र द्वारा। समारंभावेज्जा - समारंभ करावे और । णेवण्णेहिं न दूसरों से। वाउसत्थं - वायु शस्त्र द्वारा समारंभावेज्जा - समारंभ करावे और । णेवण्णे-न दूसरों से । वाउसत्थं - वायु-शस्त्र द्वारा | समारंभावेज्जा - समारम्भ करावे और ।
णे - न दूसरों की जो । वाउसत्थं समारंभंते - वायु शस्त्र द्वारा समारंभ कर रहे हैं, उनकी। समणुजाणेज्जा - अनुमोदना - प्रशंसा करे । जस्सेते - जिसके ये । वाउसत्थ समारंभा - वायु शस्त्र समारंभ । परिण्णाया भवंति - परिज्ञात- ज्ञात और प्रत्याख्यात होते हैं। से हु मुणी - वही निश्चय से मुनि । परिण्णायकम्भे- परिज्ञातकर्मा कहलाता है । त्तिबेमि - इस प्रकार मैं कहता हूँ ।
247
1
मूलार्थ - मैं कहता हूं कि हे जम्बू ! उड़नेवाले जीव वायु के चक्कर में आ पड़ते हैं । फिर वायु का स्पर्श लगने से शरीर को संकुचित कर लेते हैं और मूर्च्छित हो जाते हैं । और मूर्च्छित दशा में ही मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। वायु के आरंभ से जो निवृत्त नहीं हुए, वे अपरिज्ञातं होते हैं, तथा जो वायु शस्त्र समारम्भ से निवृत्त हो गए हैं, वे परिज्ञात होते है । जिस आत्मा ने वायु शस्त्र द्वारा समारम्भ छोड़ दिया है वही बुद्धिमान है तथा जो स्वयं वायु शस्त्र के द्वारा समारंभ न करता, दूसरों से समारम्भ नहीं कराता, तथा जो समारंभ करता है, उसकी प्रशंसा भी नहीं करता एवं जिस व्यक्ति के आरंभ परिज्ञात और प्रत्याख्यात होता है, वही मुनि वास्तव में परिज्ञातकर्मा कहलाता है ।
हिन्दी - विवेचन
वायु के प्रवाह में बहुत-से छोटे-मोटे जीव मूर्च्छित होकर अपने प्राण खो देते हैं और यह भी स्पष्ट है कि वायु के साथ अन्य अनेक त्रस जीव रहे हुए हैं। अतः वायु का आरम्भ करने से उनकी भी हिंसा हो जाती है । जैसे पंखा चलाने से वायु के साथ अन्य त्रस जीवों की हिंसा हो जाती है। इसी प्रकार ढोल, मृदंग एवं अन्य वाद्ययन्त्रों का उपयोग करने से वायु के साथ अनेक प्राणियों की हिंसा होती है । इसलिए मुमुक्षु पुरुष को वायु के समारम्भ से सर्वथा दूर रहना चाहिए ।