Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध
समारंभमाणे- समारंभ करता हुआ । अण्णे - अन्य । अणेंगरूवे - अनेक प्रकार के । पाणे - प्राणियों की । विहिंसति - विविध प्रकार से हिंसा करता है ।
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मूलार्थ - हिंसा से लज्जित हुए दूसरे वादियों को हे शिष्य ! तू देख । ये लोग, 'हम अनगार हैं' इस प्रकार कहते हुए भी नाना प्रकार के शस्त्रों से वायु कर्म-समारंभ के द्वारा वायुकाय शस्त्र का समारम्भ-प्रयोग करते हुए साथ में अन्य प्रकार के भी अनेक प्राणियों की हिंसा करते हैं । इस विषय में भगवान ने परिज्ञा-ज्ञ परिज्ञा और प्रत्याख्यान परिज्ञा का प्रतिपादन किया है । ये प्रमादी जीव इस निसार जीवन के निमित्त प्रशंसा, सम्मान और पूजा के लिए, जन्म-मरण से छूटने के लिए और अन्य शारीरिक-मानसिक दुःखों के विनाशार्थ नाना प्रकार के शस्त्रों द्वारा स्वयं वायुकाय की विराधना करते हैं, दूसरों से कराते हैं तथा अन्य करने वालों की प्रशंसा करते हैं, परन्तु यह उनके अहित के लिए और अबोध के लिए है। इस प्रकार वायुकाय समारंभ के इस अनिष्ट फल को भगवान अथवा उनके संभावित साधुओं से सुनकर सम्यक् श्रद्धा-युक्त बोध को प्राप्त हुआ शिष्य यह जानने लगता है कि इस संसार में किसी-किसी व्यक्ति को ही यह ज्ञात होता है कि यह आरम्भ अष्ट कर्मों की ग्रन्थि रूप है, मोह, मृत्यु और नरक रूप है। ऐसा जान लेने पर भी अर्थाभिकांक्षी लोक-प्राणिसमूह इससे पराङ्मुख नहीं होता, अपितु अनेक प्रकार के शस्त्रों द्वारा वायुकाय-समारम्भ से वायुकाय के जीवों की विराधना के साथ-साथ अन्य अनेक प्रकार के प्राणियों का भी विनाश करता है ।
हिन्दी - विवेचन
प्रस्तुत सूत्र में उसी बात को दोहराया गया है, जिसका वर्णन पृथ्वीकाय, अप्काय आदि के प्रकरण में कर चुके हैं । अन्तर इतना ही है कि वहां पृथ्वी आदि का उल्लेख किया गया है, तो यहां वायुकाय का प्रकरण होने से वायुकाय का नामोल्लेख किया है
गया
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• योग- पद्धति से प्रस्तुत सूत्र का विवेचन करते हैं, तो वह सूत्र साधना की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। वायु से आरोग्य लाभ के साथ-साथ आत्मा में अनेक शक्तियों एवं लब्धियों या सिद्धियों का प्रादुर्भाव होता है। क्योंकि, मन एवं प्राणवायु का एक ही स्थान है। एक का निरोध करने पर दूसरे का सहज ही निरोध हो जाता है। इस