Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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अध्यात्मसार: 6
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प्राप्त करना चाहता है, वह दुःख का मार्ग है। जैसे चूने को यदि पानी में मिला दें तब वह दूध न होते. हुए भी दूर से सफेद पानी दूध जैसा लगता है । वैसे ही सुख तो नहीं मिलता, केवल सुखाभास होता है
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निर्बाध सुख : वांछित सुख
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जो सदा ही बढ़ता रहे और जो सदा ही बना रहे, ऐसा सुख चाहिए । लेकिन हम जिस रास्ते से सुख पाना चाहते हैं, वह रास्ता ठीक नहीं है । जिन-शासन का मार्ग सुख प्राप्ति का सच्चा मार्ग है । कहते भी हैं सच्चा सुख पाना हो तो धर्म करो, लेकिन वस्तुतः सुख सच्चा और गलत नहीं होता, सुख पाने का रास्ता सही या गलत होता है । गलत रास्ते से क्या कभी कोई सही ठिकाने पर पहुँच सकता है ? नहीं । वैसे क्या गलत रास्ते से निर्बाध सुख मिल सकता है ?
सुख का स्वरूप
जिसमें दुःख न हो या दुःख की कमी हो । वह सुख, दुःख के विरोध में है । दुःख के पार नहीं, जैसे नरक की अग्नि तप्त लोहे से भी अधिक गरम है, वहाँ पर रहे हुए किसी जीव की यहाँ सूर्य की गरमी से तप्त सड़क पर रखें तो उसे सुख का अनुभव होता है। वस्तुतः यह सुख, दुःख की कमी का दूसरा नाम है । उसी प्रकार कमरे में बैठे हुए व्यक्ति को अगर गरमी लग सकती है, लेकिन उसी कमरे में यदि गरम सड़क पर घूमता हुआ कोई व्यक्ति आ जाए, तब उसे सुख का अनुभव होगा। यह भी सुख नहीं, अपितु दुःख की कमी का ही दूसरा नाम है। इस प्रकार हमारे सभी सुख किसी अपेक्षा से हैं। यह सुखानुभूति अखण्ड निर्बाध और निरपेक्ष नहीं है । जैसे एक तरफ से किसी ने सुई चुभाई तो वह दुःख रूप है दूसरी तरफ से किसी ने कटार चुभाई तो उस कटार की चुभन की अपेक्षा सूई की चुभन सुख रूप है।
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परिनिर्वाण - ऐसा सुख जो निरपेक्ष, निर्बाध और अखण्ड है । दुःख से पार है
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हम सुखाभास को ही सुख मानते हैं, सुख तो व्यक्ति को प्रत्येक क्षण चाहिए । जब तक उसे दुःख के पार रहे सुख का अहसास नहीं होता, तब तक वह पुनः पुनः सुखाभास में डूबने को आतुर रहता है, क्योंकि अभी तक व्यक्ति को परिनिर्वाण के सुख का स्वाद नहीं है । अतः वह दुःख रूप अथवा दुःख की कमी रूप सुख को ही