Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध
की
पूजा के लिए, कई चर्म के लिए या मांस, खून, हृदय, पित्त, चरबी, पंख, पूंछ, केश, शृंग - सींग, विषाण, दन्त, दाढ़, नाखून, स्नायु, अस्थि, अस्थि - मज्जा, आदि पदार्थों के लिए, प्रयोजन या निष्प्रयोजन से अनेक प्राणियों का वध करते हैं । कुछ एक व्यक्ति इस दृष्टि से भी सिंह, सर्प आदि जन्तुओं का वध करते हैं कि उन्होंने मेरे स्वजन - स्नेहियों को मारा है, यह मुझे मारता है तथा भविष्य में मारेगा। हिन्दी - विवेचन
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मनुष्य जब स्वार्थ के वश में होता है तो वह अपना स्वार्थ साधने के लिए विभिन्न जीवों की अनेक तरह से हिंसा करता है । अपने स्वार्थ के सामने उसे दूसरे प्राणियों के प्राणों की कोई चिन्ता एवं परवाह नहीं होती। अपनी प्रसन्नता, वैभवशालीता व्यक्त करने के लिए, मनोरंजन, ऐवर्श्य एवं स्वाद के लिए स्वार्थी व्यक्ति हज़ारों-लाखों प्राणियों का वध करते हुए ज़रा भी नहीं हिचकिचाता । कुछ व्यक्ति धन कमाने के लिए पशुओं का वध करते हैं, तो कुछ व्यक्ति अपने शरीर की शोभा बढ़ाने के लिए अनेक प्राणियों के वध में सम्मिलित होते हैं । परन्तु कुछ व्यक्ति स्वाद के लिए अपने पेट को अनेक पशुओं का कब्रिस्तान ही बना डालते हैं । इस प्रकार स्वार्थी लोगों के हिंसा करने के अनेक कारणों का वर्णन प्रस्तुत सूत्र में किया गया है।
प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि कुछ लोग अर्चा के लिए प्राणियों का वध " करते हैं। अर्चा के पूजा और शरीर ये दो अर्थ होते हैं । विद्या-मन्त्र आदि साधने हेतु या देवी-देवता को प्रसन्न करने के बहाने 32 लक्षणों से युक्त पुरुष या पशु का वध करते हैं तथा शरीर को शृंगारने के लिए अनेक जीवों को मारते हैं। इस प्रकार वे पूजा एवं शरीर-शृंगार दोनों के लिए अनेक प्रकार के पशुओं की हिंसा करते हैं ।
इसके अतिरिक्त चमड़े के लिए अनेक प्राणियों का वध किया जाता है और उस मृग-चर्म एवं सिंह के चर्म का कई संन्यासी भी उपयोग करते हैं। परन्तु आजकल क्रूम, काफलेदर आदि चमड़े के बूट, हैंड बैग एवं घड़ियों कि फीते रखने का फैशन-सा हो गया है और इनके लिए अनेक गायों, गाय के बछड़ों एवं भैंसों की हिंसा होती है । इसी तरह मांस एवं खून के लिए बकरे, मृग, शूकर आदि का, पित्त एवं पंख आदि के लिए मयूर, शतरमुर्ग आदि पक्षियों का, चर्बी के लिए व्याघ्र, शूकर, मछली आदि का, पूंछ के लिए चमरी गाय का, श्रृंग के लिए मृग, बारहसिंगा आदि कां, विषाण के