Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध
___कल्प-नियम-जितना व्यक्ति ऊपर उठता है, क्या नियमों की आवश्यकता उतनी कम होती है?
बात सत्य है चेतना का जितना ऊर्ध्वारोहण होता है, उतनी नियमों की आवश्यकता कम होती है। जैसे आचार्य, स्थविर, कल्पातीत होते हैं। आवश्यकतानुसार अपनी जागृत प्रज्ञा के आधार पर वे कार्य करते हैं। उन्हें कल्प की आवश्कता न होते हुए भी वे रहते तो नियमों में ही हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि उनके पीछे जो शिष्य हैं, वे उनकी प्रज्ञा और चेतना को नहीं, अपितु क्रिया को ही देखते हैं।
जैसे एक कार में जाना दूसरा हवाई जहाज में जाना। हवाई जहाज में जाते हुए अधिक सुरक्षा एवं सावधानी की आवश्यकता है। जितनी गति तीव्र होती है, उतनी ही सुरक्षा एवं सावधानी की आवश्यकता है। जिनशासन की जो व्यवस्था है, वह राजमार्ग है बहुत तीव्र है। कभी-कभी व्यक्ति की अवस्था ऐसी भी हो जाती है कि तेजस शरीर का विकास होने पर संतप्तता आ जाती है। जैसे आतापना, अनशन, आयंबिल आदि से। सात्त्विक आहार एवं ध्यान के माध्यम से उपशांति होती है। .