Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध
पृथ्वीकाय, अप्काय का वर्णन किया है, वह मैं तुम से कहता हूँ-मुमुक्षु पुरुष अपनी आत्मा से अग्निकाय रूपलोक का निषेध-अपलाप न करे और अपनी आत्मा के अस्तित्व का भी अपलाप न करे। जो व्यक्ति अग्निकाय लोक का अपलाप करता है, वह आत्मा का अपलाप करता है और जो आत्मा के अस्तित्व का निषेध करता है, वह अग्निकाय का निषेध करता है। हिन्दी-विवेचन
प्रस्तुत सूत्र में पृथ्वी और पानी की तरह अग्नि को भी सचित्त-सजीव बताया है। अग्निकाय के जीव भी पृथ्वी-पानी की तरह प्रत्येक शरीरी, असंख्यात् जीवों का पिण्ड रूप और अंगुल के असंख्यातवें भाग अवगाहना वाले हैं। उनकी चेतना भी स्पष्ट परिलक्षित होती है। क्योंकि उसमें प्रकाश और गरमी है और ये दोनों गुण चेतनता के प्रतीक हैं। जैसे जुगनू में जीवित अवस्था में प्रकाश पाया जाता है, परन्तु मृत अवस्था में उसके शरीर में प्रकाश का अस्तित्व नहीं रहता। अतः प्रकाश जिस प्रकार जुगनू के. प्राणवान होने का प्रतीक है, उसी प्रकार अग्नि की सजीवता का भी संसूचक है। :
हम सदा देखते हैं कि जीवित अवस्था में हमारा शरीर गरम रहता है। मृत्यु के बाद शरीर में उष्णता नहीं रहती। और ज्वर के समय जो शरीर का ताप बढ़ता है, वह भी जीवित व्यक्ति का बढ़ता है। अस्तु, शरीर में परिलक्षित होने वाली उष्णता सजीवता की परिसूचक है। इसी तरह अग्नि में प्रतिभासित होने वाली उष्णता भी उसकी सजीवता को स्पष्ट प्रदर्शित करती है।
उष्णता और प्रकाश ये दोनों गुण अग्नि की सजीवता के परिचायक हैं। इनके अतिरिक्त अग्नि वायु के बिना जीवित नहीं रह सकती। जिस प्रकार हमें यदि एक क्षण के लिए हवा न मिले तो हमारे प्राण-पखेरू उड़ जाते हैं, उसी तरह अग्नि भी वायु के अभाव में अपनी जीवन-लीला समाप्त कर लेती है। आप देखते हैं कि यदि प्रज्वलित दीपक या अंगारों को किसी बर्तन से ढक दिया जाए और बाहर से हवा को अंदर प्रवेश न करने दिया जाए, तो वे तुरन्त बुझ जाएंगे। किसी व्यक्ति के पहने हुए वस्त्र आदि में आग लगने पर डाक्टर पानी डालने के स्थान में उस शरीर को मोटे कपड़े या कम्बल से ढक देने की सलाह देते हैं। क्योंकि शरीर के कम्बल से आवृत होते ही, आग को बाहर की वायु नहीं मिलेगी और वह तुरन्त बुझ जाएगी। इससे