Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध
3. मैंने अमुक कार्य करने वाले व्यक्ति का समर्थन - अनुमोदन किया था । वर्तमान काल में की जाने वाली क्रिया के तीन रूप इस प्रकार बनते हैं1. मैं अमुक क्रिया या कार्य कर रहा हूँ ।
2.
मैं अमुक कार्य दूसरे व्यक्ति से करा रहा हूँ ।
3. मैं अमुक कार्य करने वाले व्यक्ति का समर्थन - अनुमोदन करता हूँ ।
अनागत- भविष्य काल में की जाने वाली क्रिया के भी तीन रूप बनते हैं, वे इस प्रकार हैं
1. मैं अमुक दिन अमुक कार्य करूंगा।
2. मैं दूसर व्यक्ति से अमुक कार्य कराऊंगा ।
3. मैं अमुक कार्य करने वाले व्यक्ति का समर्थन - अनुमोदन करूंगा ।
इस तरह क्रिया के 9 भेद बनते हैं और ये मन-वचन और शरीर से सम्बन्धित भी रहते हैं । अतः तीनों योगों के साथ इनका सम्बन्ध होने से, क्रिया के ( 9 × 3 = 27) भेद हो जाते हैं।
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'अकरिस्सं चऽहं... .' आदि प्रस्तुत सूत्र में सूत्रकारं ने सर्वप्रथम 'मैंने किया' भूतकालीन कृत क्रिया का, तदनन्तर 'मैं कराता हूं' वर्तमानकालिक कारित क्रिया का और अन्त में ‘मैं क्रिया करने वाले का अनुमोदन करूंगा' इस भविष्यत्कालीन अनुमोदित क्रिया का उल्लेख किया है। प्रस्तुत सूत्र में क्रिया के नव भेदों में से- मैंने किया, मैं कराता हूँ और मैं अनुमोदन करूंगा- इन तीन भेदों का ही प्रतिपादन किया है। प्रश्न हो सकता है कि जब सूत्रकार ने क्रिया के तीन भेदों की ओर ही इशारा किया है, तब फिर क्रिया के नव भेद मानने के पीछे क्या आधार है? यदि क्रिया के नव भेद होते हैं तो सूत्रकार ने उन नव का उल्लेख न करके तीन का ही उल्लेख क्यों किया?
इसका समाधान यह है कि प्रस्तुत सूत्र में तीन चकार और एक अपि शब्द का प्रयोग किया गया है। इन चकार एवं अपि शब्दों से तीनों कालों की प्रयुक्त क्रियाओं में अवशिष्ट क्रियाओं का बोध हो जाता है। सूत्र को अधिक लम्बा एवं शब्दों से अधिक बोझिल न बनाने के लिए क्रिया के मुख्य तीन - कृत, कारित और अनुमोदि भेदों का उल्लेख करके, शेष भेदों को च एवं अपि शब्दों के द्वारा अभिव्यक्त किया है । यह हम पहले बता चुके हैं कि आचारांग सूत्र का प्रथम श्रुतस्कन्ध सूत्र रूप रचा