Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध
प्रश्न- यदि अप्काय-जल सजीव है, असंख्यात जीवों का पिण्ड है, तो फिर उसका उपयोग करने पर उसकी हिंसा होगी ही । और जल का उपयोग दुनिया के सभी मनुष्य करते हैं, साधु भी उसका उपयोग करते ही हैं । ऐसी स्थिति में वे अप्कायिक जीवों की हिंसा से कैसे बच सकते हैं?
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उत्तर
र - जैनागमों में इस विषय पर विस्तार से विचार किया गया है। पानी तीन प्रकार का बताया गया है - 1 - सचित्त - जीव - युक्त, 2- अचित्त - निर्जीव और 3 - मिश्र, सजीव और निर्जीव का मिश्रण। इस में सचित्त और मिश्र यह दो तरह का पानी साधु के लिए अग्राह्य है । किन्तु अचित्त जल, जिसे प्रासुक पानी भी कहते हैं, साधु के लिए ग्रा बताया गया है। क्योंकि उसमें सजीवता नहीं होने से वह निर्दोष है। आवश्यकता के अनुसार उसका उपयोग करने में साधु को हिंसा नहीं होती। क्योंकि उसकी प्रत्येक क्रिया यत्ना एवं विवेकपूर्वक होती है। वह अनावश्यक कोई क्रिया नहीं करता । इसलिए उसे पापकर्म का बन्ध नहीं होता है।
यहां इस बात को भी समझ लेना चाहिए कि बाह्य शस्त्र के प्रयोग से परिणामान्तर को प्राप्त जल अचित्त-निर्जीव होता है । इसी बात को स्पष्ट करते हुए सूत्रकार कहते हैं
मूलम् - सत्थं चेत्थं अणुवीइ पास, पुढो सत्थं पवेइयं ॥26॥ छाया - शस्त्रं अनुविचिन्त्य पश्य पृथक् शस्त्रं प्रवेदितम् ।
पदार्थ - - अवधारण अर्थ में है । सत्यं - शस्त्र । एत्थं - इस अप्काय में । अणुवी - विचार कर | पास - हे शिष्य ! तू देख । पुढो - पृथक्-पृथक् । सत्थं - शस्त्र । पवेइयं -कहे हैं।
मूलार्थ- हे शिष्य! तू सोच-विचार कर देख ! इस अप्काय में पृथक्-पृथक् शस्त्र बतलाए हैं, जिन के द्वारा यह अप्काय - जल निर्जीव हो जाता है। हिन्दी - विवेचन
प्रस्तुत सूत्र में यह बताया गया है कि शस्त्रों के प्रयोग से अप्काय अचित्त हो जाती हैं। वे शस्त्र - जिनके द्वारा अप्काय निर्जीव होती हैं, दो प्रकार के बताए गए हैं- 1- स्वकाय-रूप और 2 - परकाय-रूप, अर्थात् अप्काय का शरीर भी अप्काय के