Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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प्रथम अध्ययन, उद्देशक 3
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बात कही है और हिंसा की तरह झूठ, चोरी आदि दोषों से भी सर्वथा दूर रहने का आदेश दिया है। साधु सचित्त या अचित्त, छोटी या बड़ी कोई भी चीज़ बिना आज्ञा के स्वीकार नहीं करता। वह चौर्य कर्म का सर्वथा त्यागी है। ___ सचित्त जल को ग्रहण करने में जीवों की हिंसा भी होती है और चोरी भी लगती है। क्योंकि अप्काय के शरीर पर उन जीवों का अधिकार है। और प्रत्येक प्राणी को अपना शरीर, अपना जीवन प्रिय होता है, वह उससे अपनी इच्छा से छोड़ना नहीं चाहता। जैसे हमें अपना शरीर प्रिय है, हम उसमें ज़रा सा अंग भी किसी को काट कर नहीं देना चाहते है। वैसे ही अप्कायिक जीव भी स्वेच्छा से अपना शरीर किसी को भी उपयोग के लिए नहीं देते। अतः उनकी बिना आज्ञा से सचित्त जल का उपयोग करना चोरी भी है। ... तर्क दिया जा सकता है कि जल आदि की उत्पत्ति हमारे उपयोग के लिए हुई है। अतः उसका उपयोग करने में चोरी एवं दोष जैसी क्या बात है? यह केवल तर्क मात्र है। क्योंकि संसार में विष, आदि अन्य पदार्थ भी उत्पन्न हुए हैं। फिर उनका भी । उपयोग करना चाहिए, क्योंकि सभी पदार्थ उपयोग के लिए उत्पन्न हुए हैं। परन्तु विष का उपयोग कोई भी समझदार व्यक्ति नहीं करता। दूसरी बात यह है कि जैसे मनुष्य यह तर्क देता है, उसी तरह हिंसक जन्तु भी तर्क देने लगें कि मनुष्य के शरीर का निर्माण हमारे खाने के लिए हुआ है, तो मनुष्य को कोई आपत्ति तो नहीं होगी? परन्तु मनुष्य अपने लिए यह नहीं चाहता। फिर अप्काय के लिए यह तर्क देना केवल स्वार्थीपन है।
यदि कोई साधु कुएं के मालिक की आज्ञा लेकर पानी का उपयोग कर ले तो इसमें तो उसे चोरी का दोष नहीं लगेगा? हमें ऊपर से मालूम होता है कि हम ने आज्ञा ले ली, परन्तु वास्तव में ऐसी स्थिति में भी चोरी है। क्योंकि हम पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि अप्काय के शरीर पर उसी का अधिकार है। कुएं के मालिक ने तो ज़बरदस्ती अपना अधिकार जमा रखा है। उन्होंने अपना जीवन स्वेच्छा से उसे नहीं सौंप दिया है। अतः कुएं के मालिक से पूछ कर भी अचित्त पानी का उपयोग करना चोरी है।