Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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श्री आचाराङ्ग सूत्र, प्रथम श्रुतस्कंध कर्तृत्व एवं भोक्तृत्व दोनों आत्मा में ही घटित होते हैं। प्रकृति में कर्तृत्व नहीं, कर्तत्व आत्मा में ही है और उसका फल भी उसकी सन्तान को न मिलकर उसी आत्मा को मिलता है। इससे आत्मा की परिणामी नित्यता भी सिद्ध एवं परिपुष्ट होती है।
जो साधक आत्मा के यथार्थ स्वरूप को अभिव्यक्त कर सकता है, वह लोक के. स्वरूप का भी भली-भांति विवेचन कर सकता है, क्योंकि आत्मा की गति लोक में ही है और वह लोक में ही स्थित है। धर्म और अधर्म ये दो द्रव्य इसे गति देने एवं ठहरने में सहायक होते हैं, अर्थात् जहां धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय का अस्तित्व है, वहीं आत्मा गति कर सकती है एवं वहीं ठहर भी सकती है और एक गति से दूसरी गति में परिभ्रमणशील आत्मा कर्म पुद्गलों से आबद्ध है। इससे पुद्गगलों के साथ भी उसका संबंध जुड़ा हुआ है। अतः यों कह सकते हैं कि धर्म, अधर्म, जीव और पुद्गल चारों द्रव्य लोकाकाश पर स्थित हैं या उक्त चारों द्रव्यों का जहां अस्तित्व है, उसे लोक कहते हैं। इस तरह लोक के साथ आत्मा का सम्बन्ध होने से आत्मज्ञान के साथ लोक के स्वरूप का परिबोध हो जाता है और जिसे लोक के स्वरूप का परिज्ञान होता है, वह उसका विवेचन भी कर सकता है। इस दृष्टि से आत्मवादी के पश्चात् लोकवादी का उल्लेख किया गया।
आत्मा का लोक में परिभ्रमण कर्म-सापेक्ष है। वही आत्मा संसार-लोक में यत्र-तत्र-सर्वत्र परिभ्रमण करती है, जो कर्म-शृंखला से आबद्ध है। अस्तु, लोक के ज्ञान के साथ कर्म का भी परिज्ञान हो जाता है और कर्म को जानने वाला आत्मा उसके स्वरूप का सम्यक्तया प्रतिपादन भी कर सकता है। इसी कारण लोकवादी के पश्चात् कर्मवादी का उल्लेख किया गया। . ___ कर्म क्रिया से निष्पन्न होता है। मन-वचन और शरीर की प्रवृत्ति-विशेष को 'क्रिया' कहते हैं। इस मानसिक, वाचिक एवं शारीरिक प्रवृत्ति से आत्मा के साथ कर्म का संबंध होता है। इस तरह कर्म और क्रिया का विशिष्ट सम्बन्ध होने से, कर्म का ज्ञाता क्रिया को भली-भांति जान लेता है और उसका अच्छी तरह वर्णन भी कर सकता है। इसलिए कर्मवादी के पश्चात् क्रियावादी को बताया गया।
मुमुक्षु के लिए आत्मा, लोक, कर्म एवं क्रिया का यथार्थ स्वरूप जानना आवश्यक है। इन सबका यथार्थ जाने बिना साधक मुक्ति के पथ पर आगे नहीं बढ़ सकता