Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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अध्यात्मसार: 1
मिथ्यात्व क्या है-असत् को सत् मानना और सत् को असत् मानना। शरीर को अपना जीवन मानना। शरीर के संयोग को जन्म तथा उसके वियोग को मृत्यु मानना। ___ अपने एवं अपने परिवार के जीवन को बचाने के लिए जीव कहाँ नहीं जाता? अनेक मिथ्यादेवों की शरण भी लेता है, जिससे किसी प्रकार जीवन को बचा लिया जाए। जो जीवाशंसा, अर्थात् जीवन की आसक्ति पर विजय प्राप्त करता है, वही स्वरूप-बोध-समाधि को प्राप्त कर सकता है। जो भी अपने स्वरूप की साधना करता है, उसे ऐसा उपसर्ग या परीषह आता है कि इस जीवन का हरण हो जाएगा। जो इस परीषह को जीत जाएगा, वही आत्मबोध को प्राप्त होता है। साधना के दरम्यान कभी न कभी ऐसा परीषह या उपसर्ग आता है। प्रमुखतः अन्त में आता है। उस समय अपने धर्म पर, समकित में एवं आचार में दृढ़ रहना है, तभी आत्म-बोध प्राप्त होता है। इसीलिए कहते हैं धर्म के लिए अपने जीवन का भी उत्सर्ग करना पड़े तो कर देना, वही धर्म की परीक्षा है। .
2. परिवन्दन-कैसे ही मुझे कोई वंदन करे, मेरी पूजा एवं सत्कार करे और मेरी कोई प्रशंसा करे, यह परिवन्दन एवं मान में अन्तर है। वन्दन कोई कब करेगा, गुणों को देखकर वंदन तो समकिति करता है। लेकिन मिथ्यात्वी तभी वंदन करता है, जब उसे लगता है कि मेरे से अधिक कोई शक्तिशाली है। वह शक्ति को, सत्ता को वंदन करता है। जैसे सेवक को लगता है कि स्वामी मुझसे अधिक शक्तिशाली है, तब वह स्वामी के समक्ष झुकता है।
किसी पर अपना अधिकार जमाने के लिए, किसी को अपना सेवक बनाने के लिए व्यक्ति अनेक प्रकार के कर्म करता है। येन-केन-प्रकारेण वह चाहता है कि कोई मेरी पूजा करे, वंदन करे, मेरे अधिकार में रहे; मेरी आज्ञा में रहे; इसके लिए वह जो भी कर्म करता है, वे सारे दुष्कर्म हैं। युद्ध क्यों होता है? अधिकार जमाने के लिए या कोई अधिकार छीन रहा है तो उसे बचाने के लिए। इसलिए मुनि किसी की वंदना प्राप्त करने के लिए किसी की हिंसा न करे कि मैं किसी को झुका हूँ। किसी पर विजय प्राप्त कर लूं। इस भावना से नहीं, अपितु जो भी करे, वह शासन प्रभावना के लिए शुद्ध भावना से करे।