Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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प्रथम अध्ययन, उद्देशक 2
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हिन्दी-विवेचन
प्रस्तुत सूत्र में यह बताया गया है कि जो व्यक्ति पृथ्वीकाय की हिंसा में अनुरक्त रहता है, संलग्न रहता है; उसे अनागत काल में हित और सम्यग्बोध का लाभ प्राप्त नहीं होता। अर्थात् वह हिंसा भविष्य में उसके लिए अहितकर होती है और वह बोध को प्राप्त नहीं कर पाता, इसलिए मुमुक्षु को पृथ्वीकाय की हिंसा से सदा विरत रहना चाहिए। __ प्रस्तुत सूत्र में यह भी स्पष्ट कर दिया है कि पृथ्वीकायिक आदि जीवों में चेतनता है और वे भी सुख-दुःख का संवेदन करते हैं।
- आगम के प्रमाणों से यह स्पष्ट हो गया है कि पृथ्वीकाय सजीव है। उसको सजीवता की अनुभूति भी होती है। हम देखते हैं पहाड़ एवं खान में रहा हुआ पत्थर बढ़ता रहता है और खान से निकालने एवं बाह्य शस्त्रों तथा वर्षा और सूर्य की धूप आदि के शस्त्र से निर्जीव हुआ पत्थर बढ़ता नहीं है। खान एवं पहाड़ों पर चट्टानों से संबद्ध पत्थर में होने वाली अभिवृद्धि से उसकी सजीवता स्पष्ट प्रमाणित होती है। क्योंकि सजीव अवस्था में ही मनुष्य, पशु-पक्षी आदि के शरीर में अभिवृद्धि होती है। पृथ्वी के शरीर में अभिवृद्धि होती है, उसके आकार-प्रकार एवं बनावट में अन्तर - आता रहता है। इसलिए पृथ्वीकाय को सजीव मानना चाहिए।
जो प्राणी सजीव होते हैं, वे सुख-दुःख का संवेदन भी करते हैं। पृथ्वी सजीव है। इसलिए उसमें स्थित जीव सुख-दुःख का संवेदन करते हैं। इस बात को स्पष्ट करने के लिए प्रस्तुत सूत्र में तीन उदाहरण देकर समझाया है। जैसे-किसी जन्म से अंधे, बहिरे, गूंगे और पंगु व्यक्ति का कोई व्यक्ति किसी शस्त्र से छेदन-भेदन करता है, तो उक्त व्यक्ति उस वेदना को व्यक्त नहीं कर सकता। परन्तु उसका संवेदन अवश्य करता है। इसी तरह पृथ्वीकाय के जीव भी शस्त्र प्रयोग से होने वाली वेदना को अव्यक्त रूप से संवेदन करते हैं। दूसरा उदाहरण यह दिया गया है, जैसे-किसी व्यक्ति के हाथ-पैर आदि किसी भी अंगोपांग का छेदन-भेदन करने पर तथा किसी व्यक्ति को मार-पीट कर मूर्छित एवं प्राणरहित करते समय जिस तरह उसे वेदना होती है, उसी तरह पृथ्वीकाय पर शस्त्र का प्रयोग करने से उसमें स्थित जीवों को वेदना एवं पीड़ा की अनुभूति होती है। पृथ्वीकायिक जीवों को किस तरह की वेदना