Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Atmaramji Maharaj, Shiv Muni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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प्रथम अध्ययन, उद्देशक 1
युक्तिसंगत नहीं कहा जा सकता। वास्तव में आत्मा एकांत नित्य भी तो नहीं है। यह हम पहले बता चुके हैं कि पर्याय की अपेक्षा से आत्मा अनित्य भी है। अतः अनित्यता कोई दोष नहीं है, क्योंकि एक अपेक्षा से आत्मा का स्वरूप अनित्य भी है। अस्तु, आत्मा को मध्यम परिमाण वाला मानना चाहिए। यदि आत्मा को अणु मानते हैं, तो शरीर में होने वाले सुख-दुःख की अनुभूति नहीं हो सकेगी। क्योंकि यदि आत्मा अणुरूप होगा, तो फिर वह शरीर के एक प्रदेश में रहेगा, सारे शरीर में नहीं रह सकता। अतः शरीर के जिस भाग में वह नहीं होगा, उस भाग में सुख-दुःख का संवेदन नहीं होगा। परन्तु ऐसा होता नहीं, क्योंकि सभी व्यक्तियों को पूरे शरीर में सुख-दुःख का संवेदन होता है और यदि आत्मा को विभु अर्थात् सर्वव्यापक मानते हैं तो उसमें, क्रिया नहीं होगी, स्वर्ग-नरक एवं बन्ध-मुक्ति नहीं घट सकेगी। इसलिए
आत्मा को अणु एवं व्यापक मानना किसी भी तरह उपयुक्त नहीं है। अतः उसे मध्यम-शरीर परिमाण वाला मानना चाहिए।
जैसे अनुभूति एवं स्मृति का आधार एक ही है। उसी तरह कर्तृत्व और भोक्तृत्व का आधार भी एक है। अनुभव करने वाला और अपने कृत अनुभवों को स्मृति में संजोए रखने वाला भिन्न नहीं है। ऐसा कभी नहीं होता कि अनुभव कोई करे और उन अनुभूतियों को स्मृति में कोई और ही रखे। उसी तरह कर्म का कर्ता एवं कृत कर्म का भोक्ता एक ही होता है। या यों कहना चाहिए कि जो कर्म करता है, वही उसका फल भी भोगता है और जो फल भोगता है, वह अपने कृत कर्म का ही फल भोगता है। अतः कर्तृत्व और भोक्तृत्व दोनों एक व्यक्ति-आत्मा में घटित होते हैं। सांख्य का यह मानना कि आत्मा स्वयंकर्म नहीं करता है, कर्म प्रकृति करती है और प्रकृति द्वारा कृतकर्म का फल पुरुष-आत्मा भोगती है तथा बौद्ध दर्शन का यह मानना कि कर्म करने वाली आत्मा नष्ट हो जाती है, उस विनष्ट आत्मा द्वारा कृत कर्म का फल उसके स्थान में उत्पन्न दूसरी आत्मा या उक्त आत्मा की सन्तति भोगती है, किसी भी तरह युक्तिसंगत नहीं कहे जा सकते। व्यवहार में भी हम सदा देखते हैं कि जो कर्म करता है, उसका फल दूसरे को या उसकी सन्तान को नहीं मिलता। यदि कोई व्यक्ति आम खाता है तो उसका स्वाद उसे ही आता है, न कि उसके किसी दूसरे साथी या उसकी सन्तान को आम का स्वाद आता हो। अस्तु,