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२० तत्त्वार्थ सूत्र सुनकर उत्पन्न होने वाली तत्व रूचि ।
(३) आज्ञा रुचि - वीतराग अरिहंत देव तथा श्रमण संतों की आज्ञा की आराधना से होने वाली तत्व-रुचि । . (४) सूत्र रुचि - अगंबाह्य तथा अंगप्रविष्ट श्रुत, शास्त्रों के तन्मयतापूर्वक अध्ययन से जीवादि तत्वों के श्रद्धान रूप होने वाली रुचि । ..
. (५) बीज रुचि - जिस प्रकार जल में तेल की बूंद फैल जाती हैं, उसी प्रकार जो सम्यक्त्व एक पद (तत्त्वबोध) से अनेक पदों में फैल जाता हैं, वह बीज रुचि रुप सम्यक्त्व है ।।
(६) अभिगम रुचि - अंगोपांगों (ग्यारह अंग, प्रकीर्णक, दृष्टिवाद आदि श्रुतज्ञान) के अर्थ रूप ज्ञान को अर्थ सहित जानने से और अन्यों को ज्ञानाभ्यास कराने से होनेवाला तत्त्व रुचि रुप सम्यक्त्व ।
(७) विस्तार रुचि - छह द्रव्य नौ तत्व, द्रव्य-गुण-पर्याय, प्रमाण, नय-निक्षेप आदि का विस्तारपूर्वक अभ्यास करने से होने वाला विस्तार रुचि रूप सम्यग्दर्शन ।
(८) क्रिया रुचि - दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप, विनय, सत्य समिति, गुप्ति आदि क्रियाओं में भावपूर्वक रुचि क्रिया रुचि कहलाती है ।
(९) संक्षेप रुचि - अल्पज्ञान से होने वाली रुचि । ऐसे जीव की विशेषता है कि यद्यपि उसे विशेष ज्ञान नहीं होता फिर भी इसमें हठाग्रह और कदाग्रह का अभाव होता है ।
(१०) धर्म रुचि - वीतराग भगवान द्वारा प्ररूपित श्रुतधर्म और चारित्रधर्म में श्रद्धा करना धर्मरुचिरूप सम्यक्त्व हैं ।
इस दस रुचि रूप सम्यक्त्व को सराग सम्यग्दर्शन के अंतर्गत बताया गया है । जैसा कि इस पाठ से स्पष्ट हैं -
दसविहे सराग सम्मदसणे पण्णत्ते, तं जहानिसगुवएसरुइ आणारुइ सुत्त-बीयरुइमेव । अभिगम वित्थाररुई, किरिया संखेव धम्मरुई ॥
-स्थानांग १०।३।७५१) सराग सम्यग्दर्शन का अभिप्राय क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन से है ।
... सम्यग्दर्शन की विशुद्धि सम्यग्दर्शन मोक्ष का मूल है । इसी के कारण ज्ञान और चारित्र भी
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