Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
View full book text
________________
पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम्
आर्यभाषाः अर्थ- (उपदेशे) उपदेश अवस्था में ही ( ल्यपि) ल्यप् प्रत्यय के विषय में (च) और एच्-भाव विषय में (लीयतेः) लीयति (धातोः) धातु के (एच) एच् के स्थान में (विभाषा) विकल्प से (आत्) आकार आदेश होता है।
५६
उदा० - ल्यप् विषय में- विलाय, विलीय। विलीन होकर। एच् विषय में विलाता । विलीन होकर । विलातुम् । विलीन होने के लिये । विलातव्यम् । विलीन होना चाहिये । विलेता, विलेतुम्, विलेतव्यम् । अर्थ पूर्ववत् है ।
सिद्धि - (१) विलाय: | यहां वि-उपसर्गपूर्वक 'लीङ् श्लेषणे (क्रया०आ०) धातु को ल्यप् प्रत्यय के विषय में उपदेश अवस्था में ही आकार आदेश है ।
(२) विलीय। यहां पूर्वोक्त 'लीङ्' धातु को ल्यप्-प्रत्यय के विषय में आकार आदेश नहीं है।
(३) विलाता और विलेता आदि पदों में पूर्वोक्त लीङ्' धातु को एच् विषय में इस सूत्र से विकल्प से आकार आदेश स्पष्ट है। जहां आकार आदेश नहीं होता वहां 'सार्वधातुकार्धधातुकयोः' (७।३।८४) से लीङ् धातु को गुण हो जाता है।
आकारादेश-विकल्पः
(८) खिदेश्छन्दसि । ५२ । प०वि० - खिदे : ६ । १ छन्दसि ७ । १ ।
अनु० - धातो:, आत्, एच, विभाषा इति चानुवर्तते । अन्वयः-छन्दसि खिदेर्धातोरेचो विभाषा आत् ।
अर्थ :- छन्दसि विषये खिदेर्धातोरेच: स्थाने विकल्पेनाकारादेशो भवति । उदा०-चित्तं चिखाद | चित्तं चिखेद |
आर्यभाषाः अर्थ- (छन्दसि ) वेदविषय में (खिदे:) खिद् (धातो: ) धातु के (एच) एच् के स्थान में (विभाषा) विकल्प से (आत्) आकार आदेश होता है। 0- चित्तं चिखाद । उसने चित्त को खिन्न किया। चित्तं चिखेद । अर्थ
उदा०
पूर्ववत् है ।
सिद्धि - (१) चिखाद । खिद्+लिट् । खिद्+तिप् । खिद्+णल्। खिद्- खिद्+अ । खि- खेद्+अ । चि-खाद् +अ । चिखाद ।
यहां 'खिद् दैन्ये' (दि०आ०) धातु से लिट् प्रत्यय और उसके स्थान में तिप् और उसे ण आदेश है। ''लिटि धातोरनभ्यासस्य' ( ६ 1१1८) से खिद् धातु को द्वित्व होकर 'पुगन्तलघूपधस्य च' (७/३/८६ ) से लघूपध गुण होता है। इस सूत्र से छन्द विषय में