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तड़ाहट करते हैं, वैसी ही स्थिति क्रोध से अभिभूत मनुष्यों की हो जाती है । ७. ये क्रोध से उत्पन्न क्रियाएँ हैं। ये मुख्यतः तीन हैं-अन्तरताप, योगवक्रता और व्याकुलता । इस गाथा में इन्हीं का वर्णन है।
कोहस्साणुकिया होइ, अग्गि वाप्पं व मुंचइ । परे वाप्पं च ताडेइ, मिसमिसिज्जएऽन्तरे ॥९॥
क्रोध की (विभिन्न स्थितियों में विभिन्न) अनुक्रिया होती है। (क्रोधाविष्ट मनुष्य नेत्रों से) या तो अग्नि या वाष्प जल छोड़ता है। दूसरे को या अपने को ताड़ित करता है अथवा भीतर ही भीतर मिसमिसाता रहता है ।
टिप्पण-१. अनुक्रिया अर्थात् क्रोध के आवेश से होनेवाली क्रिया विभिन्न परिस्थितियों में क्रोध से विभिन्न प्रकार की अनुक्रिया होती है। २. जहाँ मनुष्य का बल चल सकता है, वहाँ वह क्रोध में नेत्रों से अग्नि ही बरसाता है । 'अग्नि बरसाना' उपलक्षण है। इसमें गालियाँ बकना, कटु लेख लिखना, हाथ-पैर पटकना, तोड़-फोड़ करना आदि गभित हैं । ३. जहाँ बल नहीं चलता है, वहाँ मनुष्य क्रोध में रोने लगता है-आक्रन्दन करता है। ४. जहाँ शक्य हो सकता है, वहाँ दूसरों को मारता-पीटता है। वध कर देता है। युद्ध करता है और जहाँ यह शक्य नहीं हो, वहाँ अपने बाल नोंचने लग जाता है-अपने आपको पीटने लग जाता है या आत्महत्या भी कर लेता है । ५. इनमें से कुछ भी शक्य नहीं हो तो अपने आपमें जलता-कुढ़ता रहता है । इसप्रकार क्रोध अशान्त बना देता है । ६. तीन क्रियाओं से पाँच अनुक्रियाएँ होती हैं। अन्तर्-ताप से दो अनुक्रियाएँ होती हैं-अग्निवर्षण और वाष्प-मुंचन । योगवक्रता से दो अनुक्रियाएँ होती हैं-परपीड़न और आत्मपीड़न । व्याकुलता से एक अनुक्रिया होती है-हृदयदाह । इन्हीं पाँच अनुक्रियाओं का वर्णन इस गाथा में है। ७. क्रिया और अनुक्रिया से क्रोध का आविर्भाव ज्ञात होता है । ये दोनों क्रोध-कर्ता में ही होती हैं । अग्नि-वर्षण