________________
( ९३ )
वाचिक-कायिक उभयात्मक और लुम्पन-युद्ध प्रमुख रूप से कायिक प्रतिक्रियाएँ हैं। अन्य और भी इनके सदृश-विसदृश प्रतिक्रियाएं हो सकती हैं।
मन की भगवान जानें मेवाड़ के एक सम्पन्न श्रेष्ठी उज्जैन आये। वहाँ एक साहित्य-संस्था थी। संचालकों ने सोचा-'अपने यहाँ का साहित्य इन्हें भेंट करने से संस्था को कुछ दान प्राप्त हो सकेगा।' उन्होंने बड़े प्रेम से सेठजी को साहित्य भेंट किया। सेठजी ने मधुर स्वरों से वार्तालाप किया। कुछ देर बाद सेठजी साहित्य लेकर वहाँ से रवाना हो गये। संचालकगण परस्पर मुंह ताकता रह गया । ___ कुछ दिन बाद सेठजी के लोभ या और किसी कारण से उनका गुमाश्ता नाराज हो गया। उसने सेठजी के गुप्त खजाने का भेद शासन को बता दिया। अधिकारियों ने सेठजी के यहाँ छापा मारा। उनके पूर्वजों के द्वारा संचित चाँदी की शिलियों की बहुत बड़ी राशि पर अधिकारियों ने कब्जा कर लिया। सेठजी हँसते मुख से कहते रहे-'ये थी तब भी मुझे कोई लाभ नहीं हुआ। क्योंकि 'ये हैं'-यह मुझे ज्ञात ही नहीं था। ये चली जाएँगी तो भी मेरे लिये फर्क क्या पड़नेवाला है। परन्तु मन पर जो बीती होगी, वह तो भगवान ही जाने।
--- छापा डालने के समाचार अखबारों में बड़ी सुखियों से छपे । लोभ की क्रिया के पहचानने के लक्षण
उदिओ सो मणरत्तं, गिरं सदिण्ण-चाडुयं । कायं पावमयं किच्चा, नासइ अप्प-गोरवं ॥३८॥
उदय में आया हुआ वह (लोभ) मन को राग से युक्त, वचन को दैन्य और चाटुता से युक्त और काया को पाप से युक्त करके आत्म गौरव का नाश करता है। अर्थात् राग, दैन्य, चाटुता और पाप-प्रवृत्ति लोभ-विपाक के लक्षण हैं।